Book Title: Anusandhan 2005 02 SrNo 31
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 28
________________ फेब्रुआरी-2005 करवामां आव्युं छे ( क. ५३-५४). ८. संघना प्रयाण - समये नगरशेठ प्रेमाभाई, शेठ उमाभाई ( हठीसिंग), शेठ भगुभाई वगेरे मोभीओ आवीने संघपतिने तिलक - विधि करे छे. संघपति पण प्रतीकरूपे श्रीफलनो स्वीकार करे छे पण दाम-रोकडा पैसा नथी लेतां, ए वात बहु मार्मिक लागे छे (क. ६७-६८). ९. संघना प्रबंध माटे ईस्माल नामे मुस्लिम, सरकारी न्यायाधिकारीनो उल्लेख (क. ७१) तथा विलायती (बेन्ड) वाजां लाव्यानी नोंध (७३) अगत्यनां छे. संघ - प्रयाण - समये 'तल पडवा जेटली पण जगा बची नहोती' (७४). १०. संघवीनां पुत्रवधूनुं नाम जेकोरवहू छे (क. ७५ ). ११. संघनी रक्षा माटे भील लोको तथा तुर्की (पठाण) सैनिको उपरांत सरकारनी पलटण पण हती अने हथियारना परवाना पण संघवीए मेळवेला (७७). 233 १२. मा.शु. ८ना संघनो पहेलो पडाव मादलपुर गामे थयो, त्यांथी सरखेज गा मुकाम कर्यो (८५). सरखेजमां आदिनाथ - देरासर हशे तेम क. ९० परथी लागे छे. त्रीजो पडाव मोरैया गामे थयो, त्यां विमलनाथनुं देरुं हतुं (९०). त्यांथी बावला गामे, त्यां वासुपूज्य - चैत्य हतुं. त्यांथी कोठ गामे पडाव थयो (९४). १३. चालु पदयात्रामां पण संघपति मौन ११नो पौषध लई आराधना करे छे (९२) ते वात प्रेरणादायी छे, तो संघमां रोजरोजना जमणनो प्रबन्ध जोईताराम नामे बालब्रह्मचारी श्रावकना हाथमां छे ते वात पण (९३) मजानी छे. १४. संघमां, पं. रूपविजयजीना संघाडाना पं. रत्नविजयजी वगेरे, शुभवारना परिवारना पं. हरखविजयजी वगेरे, पं. कीर्तिविजयजी वगेरे, पं. मणिविजयजी वगेरे, पं. दयाविमलजी वगेरे साधुगण साथे पधारेल हता (क. ९९-१०९). संघमां १६० गाडां हतां. (११३). १५. कोठ पछी गुंदी, बरोल, ओडवाल थई धंधुका संघ आव्यो, त्यां धर्मनाथनुं देरासर हतुं (क. ११४११५). त्यांथी पोलार (पोलारपुर ) अने पछी बरवाला मुकाम कर्या. त्यांथी शत्रुंजय पर्वतनां प्रत्यक्ष दर्शन थयांनो उल्लेख अति रोमांचकारी छे (११७). १६. संघमां छ'री' पाळनारा यात्रिको ६२५ होवानो निर्देश पण नोंधपात्र छे (क. ११८). १७ . त्यांथी पछेगाम, त्यांथी उंबराला (उमराळा), त्यां अजितनाथ - मन्दिर; त्यांथी रोईशाला (रोहीशाळा), त्यांथी आकोलाजी, अने मा.व. ११ना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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