Book Title: Anusandhan 2005 02 SrNo 31
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 51
________________ 46 अनुसन्धान-३१ १४ सुत दो अंकुस जमणे कर डाबे । नाग पास अंबा डाल । ब्राह्मण कूपे पडि थयो छे । वाहन सिंह विसाज ॥१६॥ १५ ठकुराइंसुं प्रभु चरण नमिनें । देसना पेहलि रसाल । चउविह संघने थापि थापे । तिरथनि रखवाल ॥॥१७॥ १६ सहेसावन प्रभुचरणने पुजे । केसरने बरास । काल अनादि कुवासना छंडि । हूं आव्यो तुम पास ॥।॥१८॥ १७ साहेब सांभलो विनति एक मुझ । लख वाते अक वात । मेहेर करि आपो मुझ दरीसण । तुमे छो मात ने तात ॥॥१९॥ १८ काल अनादि चेतन भटक्यो । हजिओ न आव्यो पार । नेम प्रभु हवे तुं मुझ मलियो । द्यो दरिसण अकवार |||२०|| १९ पंचमि टुंक दत्त गणधर पगलां । दरिसणथि दूख नास । गिरिगुण गाता गजवर पगले । आवंता शुभ वास ॥बे।।२१।। २० नेमनाथ प्रभुना लघु बांधव । पुरवे गुफामा आगे । मेरु परे रह्या काउसग ध्यांने । आतिमगुंण प्रगटाय ||बे।।२२।। २१ ओणे अवसर राजुल गुफामे । पाउस भिजी जाओ । वस्त्र विना राजिमति देखीने । चरणे चतुर चपलाये ||बे||२३|| राजिमति उपदेश देईने । मोकले नेम प्रभु पास । आलोयण लेइ सीवपुर पोहता । सादि अनंत निवास ||२४|| ओणि परे संघवी भावना भावि । आवे तलेटी जांम । नोकारसि करता मन आणंद । हरख्यो आतिमराम ॥ब।२५।। आदि जीणंद ने माहावीर स्वामी । सेहरमाहे प्रासाद । मंडप उपर ध्वजा फरुके । बोले घुघरिनाद ॥ब।।२६।। २५ कोशनि वृध्धी करी परभाते । आव्या जालरसंन । रात वसी धोराजी आव्या । करवा प्रभु दरसन ॥२७॥ २६ प्रथम जिणंद ने पास प्रभु नमि । नमिया शांति जिणंद । चंद्रप्रभु दरिसन उलसे । जिन मुख सितल चंद ॥।॥२८॥ २७ संघवि संघ लेई जात्रा करता । पूरण दसमी ढाल ।। जे नरनारि कंठे करस्ये । वरस्ये सिव वरमाल ॥॥२९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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