Book Title: Anusandhan 2005 02 SrNo 31
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-३१
३९ मारग चालंता मुंनि देखी । वंदन करो भलि भांते जीरे ।
संघ भगति परभातें उठी । भोजन न करो राते ॥म।।३।। साधरमिकने साधु साधवि । भावे भगति करज्यो जीरे ।
भव-स्थिति लघु परिपाक करिने । सिवरमणि जइ वरज्यो।।मा|४॥ ४१ जिनवरपूजा ने नित उछव । करज्यो नव नव भांते जीरे ।
संघतणि ठकुराई विलस्यो । चालो गिरि गुण गाते।।म।।५।। ४२ मोकले हाथे धन वावरज्यो । संघ सहित गिरी पुजो जीरे ।
चउद खेत्रमा ओ समो तिरथ । अवर नहि कोइ दूजो ।।म।।६॥ ४३ ओ सिखामण रुदये धरिने । संघ, तिलक करावे जीरे ।
शांतिनाथ प्रभु पास जिनेश्वर । पुजि घेर पधरावे ॥म।।७।। ४४ कामेश्वरनि पोल भलेरी । त्रिभोवनस्वांमि मलिया जीरे ।
संघवि बेहेचरभाइ मन जाणे । मनना मनोरथ फलिया ॥मा।८॥ ४५ सामइयु भलि भांते करिने । जिनमंदीर संचरिया जीरे ।
जल चंदन कुसुमें करि पुजा । भावस्तवमां भलिया ।।म।।९॥ ४६ विनति करवा आव्यो सेवक । साहेब चितमा धरज्यो जीरे ।
सेवक उपर मेहेर करिने । मुझ चित पावन करज्यो ।म॥१०॥ ४७ रात दिवस तुंम समरण करतां । पाप करम सवि गलिया जीरे ।
संघपति नांम धराव्युं ज्यारे । सिद्धाचल गिरि मलिया ।।म।।११।। ४८ अणि विधिस्यूं प्रभु भावना भावि । म्यानामे प्रभुजी बिराजे जीरे ।
संघ मलि समेतसिखरजी लावे । जिनमत श्रावक गाजे ॥मा॥१२॥ ४९ सनात्र भणावि प्रभु पधरावि । अट्ठाइ महोछव मनरंगे जीरे ।
पंच कल्याणक पास प्रभुना । गुणिजन गावे उमंगे ॥मा॥१३॥ ५० बिजे दिन आदेश्वर भगति । पूजा नवांण प्रकार जीरे ।
साम्हीवच्छल बहू पकवाने । भगति करे नरनारि ॥मा॥१४॥ ५१ विसथानिक पद सेवा करतां । जिनपद बांधे नाम जीरे ।
बार व्रतनि पुजा भणावे । सारे वंछित काम ।म।।१५।। नवपद ने वली सत्तरभेदी । करतानि पुजा भणावेजीरे । दूधपाक लाडुंने पूरी । भोगि नर सुख पावे ॥मन।।१६।।
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