Book Title: Anusandhan 2003 12 SrNo 26 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 5
________________ संशोधन, पुनःग्रन्थन वगेरे लाधत, अने "जैसासंइ"ना प्रकाशन पछीना दायकाओमां जे अतिविपुल काम थयुं छे तथा साहित्यिक सामग्री प्रकाशमां आवी छे, तेनो पण विनियोग तेमणे सुपेरे करी आप्यो होत. आम छतां, आ अनन्य सन्दर्भग्रन्थ जेवा छे तेवा रूपमां पण ओछो उपयोगी तो नथी ज. वळी, आ ग्रन्थ आजे तो अलभ्यप्राय थयो छे. आवे वखते तेनुं यथावत् पुनर्मुद्रण थाय तो ते पण उपयोगी ज नीवडवानुं छे. अपेक्षा एटली ज रहे के आवा सरस सन्दर्भ ग्रन्थनो समुचित उपयोग आपणा विद्वान मुनिराजो, साध्वीजीओ तथा जैन-अजैन सर्व विद्वानो करवा लागे. अन्यथा आ ग्रन्थ ज्ञानभण्डारोनी-लायब्रेरीनी शोभा वधारनारो ज बनी रहेशे. - शी. आवरणचित्र : पुराणी पोथीमां अंकित सरस्वतीदेवी, चित्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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