Book Title: Anusandhan 2000 00 SrNo 17
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान-१७. 204 दान इति केचित्पठन्ति, 'दद दाने' इत्यत्र धारणे इति तदयुक्तम् । तेमणे कौशिकनुं नाम आप्युं नथी. ते पोते आ मतने अयोग्य ठेरवे छे अने तेना समर्थनमां शिशुपालवधना श्लो. १९. ११४ने तेमज काव्यप्रकाशना श्लो. १०.५९३ने टांके छे जेमां अनुक्रमे दद धातु दानना अने दध धातु धारणना अर्थमां प्रयोजायो छे.
दाददो दुद्ददुद्दादी दादादो दुददी ददोः..... ददः ॥(शिशु १९. ११४) तद्वेषोऽसदृशोऽन्याभिस्त्रिभिर्मधुरताभृतः । दधते सुलभां शोभां तदीया विभ्रमा इव ॥ (काव्यप्रकाश, १०. ५९३) , एक नोंधपात्र बाबत ए छे के क्षीरस्वामीए कौशिकनो आ मत आप्या बाद एक तटस्थ विवेचकने शोभे तेवो सरस खुलासो कर्यो छे : युक्तायुक्तत्वे त्वत्र सूरयः प्रमाणम् । वयं हि मतभेदप्रदर्शनमात्रेणैव कृतार्थाः । मुनिमुख्यानां वाक्यं कथंकारं विकल्पयामः, वयमपि हि स्खलन्तोऽन्यैः कियन् नोपलप्स्यामहे । योग्यायोग्यत्वनी बाबतमां मुनिओ प्रमाण छे. अमे तो मात्र मतभेद- प्रदर्शन करीने कृतार्थ थईए छीए. मुख्य मुनिओनां वाक्योनी अमे केवी रीते छणावट (साचुं शुं खोटं शुं ?) करीए ? अमारी भूल थाय तो शुं अमे पण केटला ठपकाने पात्र नहीं थईए ? (पुरुषकार वृत्ति (पृ. १२)मां कृष्ण लीलाशुके कौशिकना मत साथे आ खुलासो पण आप्यो छे. मात्र बोपदेवना धातुपाठ, कविकल्पद्रुम (पृ.३४)मां दध ददे एवो पाठ मळे छे जे कौशिकना मतनुं समर्थन करे छे... ___२. युतृ जुतृ भासने । क्षीत (पृ. २०) ..... कौशिकस्तु ज्योतिः सिद्धये जुर्ति ज्युति मन्यते । ज्योतिश्च धुतेरसिजादेश्च । (उ. २. ११०) इति सिद्धम् । जुतिरिति दुर्ग: । कौशिक ज्योति: शब्दनी सिद्धि माटे जुति उपरांत ज्युति एवो धातु पण सूचवे छे. मोटाभागना बधा धातुपाठोमां क्षीतनी जेम ज भ्वादि गणना आ धातुओनो पाठ छे. 'क्षीत'कार उणादि सूत्र द्युतेरसिजा० (२-११०)थी आ शब्दनी सिद्धि दर्शावे छे. एनो अर्थ ए थयो के एमने 'ज्युति' जेवो धातु मानवानी जरूर लागती नथी. 'क्षीत'ना संपादक युधिष्ठिर मीमांसके दर्शाव्युं छे के क्षीरस्वामीए 'अमरकोश' परनी 'अमरकोशोद्घाटन' टीकामां 'ज्योतिः' (३-३.२३१) शब्दने समजावतां 'ज्योतते
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