Book Title: Anusandhan 2000 00 SrNo 17
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 242
________________ (स्व.) पंडितप्रवर दलसुखभाई मालवणियानी साहित्योपासना - जितेन्द्र शाह महामना पं. श्री दलसुखभाई मालवणियाए आजीवन विद्यानी उपासना करी केटलाये ग्रंथोनुं संपादन अने अनेक लेखो लख्या छे. तेमनी विशिष्ट प्रज्ञाने कारणे जैनदर्शननो अनेकान्तवाद खूब ज सुंदर रीते रजू थयो छे. जैनागम अने तेना उपर रचायेला साहित्यना तेओ प्रथम कक्षाना मर्मज्ञ विद्वान् हता. मात्र जैनदर्शन ज नहीं, पुराणां तमाम भारतीय दर्शनो, पण तलस्पर्शी ज्ञान धरावता हता. भारतीय दर्शनना प्रौढ ग्रंथोनां गहन रहस्योने सरळताथी अने सहजताथी उकेलता जोईए त्यारे एम लागे के तेओ भारतीय दर्शनना महर्षि छे. न्यायवतारवार्तिकनी विस्तृत प्रस्तावना अने तुलनात्मक टिप्पणो तो भारतीय दर्शनशास्त्रना अध्येता माटेनो महामूल्यवान् खजानो छे. स्थानांग-समवायांगसूत्रनो अनुवाद जैनदर्शनना विश्वकोशनी गरज सारे तेवो छे गणधरवादनी प्रस्तावनामां जैनदर्शननी अन्यदर्शनो साथेनी तुलना वांचतां तेमना बहुश्रुतत्वनो सहज परिचय थाय छे. आ उपरांत तेमणे अनेक ग्रंथोनां संपादनो कर्यां छे, ए अने एमना विविध लेखोमां दार्शनिक अने आगमिक विषयोनी ऊंडाणपूर्वक चर्चा थयेली छे. साथे साथे तेमां समकालीन घटनाओ, विशिष्ट प्रसंगो आदिनु मार्मिक चिंतन पण जोवा मळे छे. भारतभरनी सुप्रसिद्ध शोधपत्रिकाओमां तेमना लेखो प्रकाशित थया छे. गुजराती, हिन्दी, तेमज अंग्रेजी भाषामां पण आ लेखो लखायेला छे. एक लेख तेमणे प्राकृत भाषामां पण लख्यो छे. आ समग्र लेखनोनो प्रकाशनार्थे संग्रह थई रह्यो छे. आ लेखना संग्रह-प्रकाशननुं कार्य करता तेमना जीवन दरम्यान करेल कार्योनी सूचि तैयार थई छे ते अत्रे सामेल करवामां आवी रही छे. ते उपरथी ज तेमनी विशिष्ट प्रज्ञानो ख्याल आवशे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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