Book Title: Anusandhan 2000 00 SrNo 17
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 241
________________ अनुसंधान - १७•232 नहि, ने छेक सुधी अमदावादमां ज रह्या. अमे ओपेरा सोसायटीमां चातुर्मास कर्यु. त्यारे तो तेओ व्याख्यान सांभळवा पण आवता. न अवायुं होय तो श्रोता मित्र इन्दुभाई झवेरी द्वारा बधुं जाणता. ते चोमासामां संघमां कंठाभरण तप थयेलुं. ते निमित्ते भगवानने सोनानो हार चडाववानो उत्सव हतो. भारे आश्चर्य वच्चे में जोयुं के ए उत्सवमा दलसुखभाई पण सामेल हता, देरासरमां पण बधा साथे भाग लेता हता. पछी तो तेमणे ज कह्युं के हुं वारंवार दर्शन माटे जतो ज होउं छं. आवी तो अनेक वातो छे, जेमां नास्तिक मनायेला आ विद्यापुरुषना ऊजळा आंतर- प्रवाहोनो परिचय मळी रहे, 'अमुक माणसे तमारा माटे आवी आवी खराब वातो/निंदा करी' आवुं तेमने कहेवामां आवे तो तेओ निर्दोष हास्य वेरता, अने कहेता के एमने मारामां एवं लाग्युं हशे तो कहेता हशे अने पछी ए ज व्यक्ति कोई काम लइने तेमनी पासे आवे तो कोई ज अरुचि, नफरत के दुर्भाव विना तेनुं काम करी आपता. आ रीते वर्तवानुं भलभला साधुपुरुष माटे पण, घणीवार, अघरुं होय छे. आवा सज्जन विद्वाननी चिरविदायथी गुजरातनुं विद्याजगत निःशंक दरिद बन्युं छे. भारते एक दार्शनिक प्रतिभा गुमावी छे, अने जैन समाजे एक प्रतिभासंपन्न पंडित पुरुषने खोयो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274