Book Title: Anusandhan 2000 00 SrNo 17
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 228
________________ अमदावाद - राजनगरना आंगणे योजायेल शासन सम्राट श्रीविजयनेमिसूरीश्वरजी जैन स्वाध्याय मंदिर आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी ग्रंथालय पंडित दलसुख मालवणिया प्राकृत ग्रन्थ परिषद् आदिनो उद्घाटन समारोह जैनाचार्य श्रीविजयसूर्योदयसूरीश्वरजी महाराज तथा तेमना शिष्य आचार्य श्रीविजयशीलचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजनी पुनित प्रेरणाथी श्री राजनगर - अमदावादना आंगणे एक अनोखा, विविधलक्षी स्वाध्यायमन्दिरनुं आयोजन ताजेतरमां थयुं, जेनाथी मात्र जैन समाज ज नहि, परंतु व्यापकरूपमा समग्र समाज स्वाध्याय वडे लाभान्वित थई शकवानो छे. निमित्त : आ आयोजननुं पायानुं निमित्त बनी प्राकृत ग्रंथ परिषद् भारत देशना प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद तथा पंडित सुखलालजी वगेरे महानुभावोए, जैन आगमोनी भाषा प्राकृत होवाथी, प्राकृत भाषाना साहित्यनो उद्धार करवानी शुभ भावनाथी, ई. १९५३मां आ संस्थानी स्थापना करी हती. प्रथम बनारसमां अने पछीथी अमदावादमां पांगरेली आ संस्थाना आश्रये अत्यंत मूल्यवान अने विश्व प्रसिद्धि पामेलां ३६ जेटलां प्रकाशनो थयां छे. आम छतां आ संस्थाने पोतानुं आगवुं कार्यालय न होवाथी घणी बधी मुश्केली अनुभवाया करती हती. संस्थाना संचालक पं. श्री दलसुख मालवणिया तथा डॉ. हरिवल्लभ भायाणीए आ अंगे आचार्य श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजीनो सहकार सातेक वर्ष अगाउ माग्यो हतो. तेनी फळश्रुतिरूपे, पण जराक मोटा अने बहुआयामी स्वरूपे, आ स्वाध्याय मंदिरनो उद्भव थयेल छे. सोनामां सुगंध : वि. सं. २०५५ (ई. १९९९) नुं वर्ष जैनोना महान उपकारी गुरु शासनसम्राट जैनाचार्य श्रीविजयनेमिसूरीश्वरजीना स्वर्गारोहणनी अर्धशताब्दीनुं वर्ष हतुं. ए वर्षे उजवणी तो व्यापक धोरणे थई, परंतु अमदावादमां तेओनुं स्थायी अने समाजोपयोगी मूल्य धरावतुं स्मारक थवानुं बाकी रही गयुं हतुं. आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274