Book Title: Anusandhan 2000 00 SrNo 17
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 238
________________ अनुसंधान - १७•229 अमे 'महावीरस्वामीनी अहिंसा' विशे व्याख्यान माटे भेगा थया हता. तेमां अमे अपराध करनारने पण क्षमा देवानी वातो करवाना हता. दुर्भाग्ये ते प्रवचन तो न थई शक्युं, परंतु ते साथे ज प्रवचनने आचरणमां मूकवानो मोको तो मळी गयो; एटले. अमे युवानोने निर्दोष गणावी छोडावी मूक्या ! कहो, अमे भगवाननी वाणीनुं पालन कर्तुं ते योग्य के अयोग्य ? बीजो एक प्रसंग बहु जाणीतो नथी. संदर्भ पचीसमी शताब्दीनो ज छे. मालवणिया पर एक दहाडो एकाएक फोन आववा शरू थया. अजुगती भाषामा शताब्दीनी उजवणीनो विरोध करवानी सलाह, अने तेम नहि थाय तो मारी नाखवानी धमकी, आ ए फोननो संदेशो. बे एक दिवस पछी फोन करनारे उग्र भाषामां कह्युं के हुं तमारी हत्या करवानो छु, तैयार रहेजो. श्रीमालवणियाए लेश पण विचलित थया विना तेने कह्युं के तमे क्यारे अने क्यां मारुं खून करवा मागो छो ते कहो, तो हुं त्यां ते समये हाजर रही शकुं, ने तमारे धक्को न पडे. अने हुं एकलो ज आवीश, एटले बीजी चिंता न करता. आवो जवाब अपाया पछी ए फोन आवता तो बंध थई गया, ए पण एक चमत्कार ज गणाय. परंतु, आ वातना संदर्भमां में तेओने पूछयुं के जो पेली अनामी व्यक्तिए तमने समय आप्यो होत तो तमे शुं करत ? त्यारे पूरी गंभीरताथी तेमणे मने कह्युं के महाराज ! तो हुं ते जग्याए अने ते समये एकलो अवश्य जात, अने तेने प्रेमथी आवा खतरनाक मार्गेथी पाछो वळवा समजावतं. ज्ञानोपासनानी वात करूं तो तेमनो परिचय ज मने ज्ञानाभ्यासना संदर्भे थयो हतो. मारा अध्ययनमां आवता तर्कशास्त्रना अमुक पदार्थ मने बेठा नहि. थयुं : कोने पूछें तो आनो उकेल मळे ? बहु मथामण पछी सूझ्युं के मालवणियाजी प्रखर दार्शनिक गणाय छे तेमने पूछावुं. में पत्र लखीने पूछाव्युं हुं पांजरापोळ उपाश्रये. तेओ इन्डोलोजीना निर्देशक. मारा पत्रना जवाबमां एक दिवस बपोरे बे वागे तेओ मारी सामे आवीने ऊभा रह्या. कहे : हुं दलसुख हुं तो ताजुब ! कोई दिवस जोयेला नहि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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