Book Title: Anusandhan 2000 00 SrNo 17
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान-१७. 208 (पृ. २४) एम त्रणे आपे छे एवो संभव छे के पुरुषकार वृत्तिमां कुटने बदले कुठ वंचायुं होय कारणके हस्तप्रतमा टने ठनो गोटाळो थवानो संभव छे.
८. मुडि खण्डने । क्षीत (पृ. ५७)-मुटि इति कौशिकदुर्गोंमुण्टति । भ्वादिगणना मुडि खण्डने धातुनो कौशिक अने दुर्ग मुटि पाठ कहे छे. माधावृ (पृ. ११३)मां, धा. प्र. (पृ. २६) अने लगभग बधा ज धातुपाठमां मुडि एम धातु मळे छे. दैव परनी पुरुषकार वृत्ति (पृ. ६४)मां मुडि खण्डने-ना संदर्भमां शुठीति कौशिकदुर्गौ । शुण्ठति मळे छे. तेमां मुटिने बदले शुठि कदाच वंचायुं होय तेम क्षीतना संवादो युधिष्ठिर मीमांसकनु मानवं छे. प्रकरणनी दृष्टिए पण शुठि अहीं बंध बेसतुं नथी.
९. शुठि शोषणे । श्रीत (पृ. ६०)-एनं कौशिको नाध्येष्ठ । क्षीरस्वामी जणावे छे के भ्वादि गणना आ धातुनो कौशिक पाठ करतो नथी के एने स्वीकारतो नथी. माधावृ (११५)मां, धाप्र (पृ. २८)मां, पुरुषकारवृत्ति (पृ. ६३) अने कवि (पृ. २५)मां शुठ शोषणे धातु आपे छे. शुठ धातु परनी आवेलो शुण्ठी (सूंठ) शब्द प्रचलित छे (माधावृ. पृ ११५). आ धातुनो पाठ करवा केम कौशिके ना पाडी हशे तेनो ख्याल आवतो नथी. चान्द्र व्याकरणमां आ धातुनो पाठ नथी.- तेने अनुसरीने कदाच आवो मत कौशिके दर्शाव्यो होय. .
१०. मेप रेपृ लेप गतौ । क्षीत. (पृ. ६३)-हेप् च इति कौशिकः । ___माधावृ (पृ. ११७)मां पण उपर्युक्त धातुसूत्रनी व्याख्यामां आम कौशिकनो नाम वगर निर्देश छे : क्वचित् पढ्यते हेप धेपृ इति च । आ हे धातु, वर्तमानकाळ तृ. पु. एकवचन- रूप हेपते थाय छे, आ धातु कोई धातुपाठमां मळतो नथी, ते नोंधq घटे.
११. बर्फ, रफ, रफि, अर्ब, बर्ब, कर्ब, खर्ब, गर्ब, धर्ब, शर्ष, षर्ब.... नर्ब गतौ । क्षीत.. (पृ. ६८) - अ.त्यादौ रेफस्थाने नकारं कौशिको मन्यते । माधावृ (पृ. १२५)मां आ ज मत बीजा शब्दोमां मळे छे. अर्बादियो नोपधा इति कौशिकः' अने कौशिक भ्वादिगणना आ धातुसूत्रना अर्बथी
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