Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 14 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 7
________________ त्यारबाद श्लोक ६० थी ६५मां प्रत्यक्षादि दरेक प्रमाणनी तथा तत्त्व अने तत्त्वसाधक प्रमाणनी व्याख्या आपी छे अने छेल्ले ६६मा श्लोकमां कह्युं छे के रहस्य सहितनां सर्व शास्त्रो तो दूर रहो, सारी रीते शीखेलो एक अक्षर पण निष्फळ जतो नथी। आ साथे प्रतिमां ग्रंथनो स्तबकार्थ पण जूनी गूजरातीमां आपेलो छे । अमुक स्थानोने बाद करतां प्राय: सर्वत्र आ टबो योग्य अने संगत छे । परंतु केटलांक स्थानोमां आ स्तबकार्थ असंगत जणाय छे, तेनी नोंध नीचे आपेल छे । श्लोक असंगत अर्थ ३ पुन्य- पापनइ संवरइ पुन पुनरपि कर्मबंध न करइ । संभवित संगत अर्थ पुन्यनो संवरमां अने पापनो आश्रवमां अंतर्भाव करवो । ज्ञान-दर्शन- चारित्र मोक्षनो मार्ग छे। ज्ञान- दर्शन - चारित्र मोक्षनइ विषइ वर्तइ । एहनइ च्यारि दर्शनना प्रवर्तावक हूआ । अनुक्रम आर्य सत्य आख्याय अने तत्त्व । नास्तिक अनुमानना त्रण अंग कहइ (व.) । नास्तिक शेष थाकती सिद्धि जे ते सामान्याकारि कहइ ( व . ) 1 ४ २१ ६० ६१ 2 ६२ सामान्य प्रकारि विख्यात हुइ ते साध्य साध्य-साधन सामान्यथी कह्या ओपमाइ करी देखाडीयइ ते साधन छे. उपमा आ प्रमाणे छे । आना लीधे कल्पी शकाय छे के मूळ ग्रंथ तथा टबाना कर्ता जुदा जुदा छे. श्लोक ३१मां आवता मौण्ड्य शब्दनो अर्थ टबाकारे 'मस्तकि सद्र करावइ' एवो कर्यो छे । आ सद्र शब्दनो प्रयोग नोंधपात्र छे । प्रतनो परिचय : षड्दर्शनपरिक्रमनी आ प्रत पंचपाठी छे । तेनुं लेखन सं. १६३६मां श्रीमालपुरमां थयेलुं छे। अने तेना लेखक (मुनि) समयकलश छे । प्रतिनी शुद्धि सारी छे तथा अक्षरो सुवाच्य छे। कुल पत्रो ३ छे । Jain Education International बौद्धोना चार तत्त्वो आर्यसत्य एनामे प्रसिद्ध छे । ते आ प्रमाणे । अनुमिति लिंगथी थाय, जेम धूमथी अग्निनी अनुमिति । अनुमानना ऋण प्रकार छे : पूर्व, शेष, सामान्य । (साथे तेना उदाहरण पण छे) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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