Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 14 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 5
________________ 3 अनुक्रम १. षड्दर्शन- परिक्रमः गूर्जर अवचूरि सह सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय १-१० २. अज्ञातकर्तृक बे दृष्टान्त शतको सं. मुनि धर्मकीर्तिविजय ११-२६ ३. अज्ञातकर्तृक समवसरणस्तोत्र सं. आ. अरविंदसूरि २७-३० ४. मुनि विनयवर्धनलिखित - एक विज्ञप्तिपत्र .सं. मुनि रत्नकीर्तिविजय ३१-३७ अष्ट महाप्रातिहार्यवर्णनः अपभ्रंशभाषामय आठ पद्य सं. प्रद्युम्नसूरि ३८-४१ ६. सोमतिलकसूरिविरचितं करहेटकपार्श्वनाथस्तोत्रम् सं. विजयमुनिचन्द्रसूरि ४२-४४ ७. श्री भंवरलाल नाहटा (कलकत्ता) का पत्र ४५-४७ ८. कविविल्हरचित-भीमछंद (अणहिलपुर) सं. भंवरलाल नाहटा ४८-४९ वाचकश्रीसिद्धिचन्द्रगणिकृत न्यायसिद्धान्तमञ्जरी - टिप्पनक सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय ५०-६९ १०. 'चंदप्पहचरियं'नी रूपककथा सं. सलोनी जोषी ७०-९१ ११. सूक्तावली सं. नीलांजना शाह ९२-१०५ १२. कल्पसूत्रमें भद्रबाहु-प्रयुक्त ‘याग' शब्द विजयशीलचन्द्रसूरि १०६-११२ १३. डॉ. मधुसूदन ढांकीने श्रीहेमचन्द्राचार्य चन्द्रक-प्रदानना समारोहनो तथा 'आर्थ भद्रबाहु और उनका साहित्य' विषयक संगोष्ठीनो संक्षिप्त हेवाल ११३-११४ १४. प्रकाशन - वर्तमान ११५-११६ १५. ढूंक नोंध : विजयशीलचन्द्रसूरि ११७-११९ १६. उत्तर गुजरातनी बोलीमां वपराता केटलाक शब्दो डॉ. रमेश आ. ओझा १२०-१२३ १६. गुजरातीमां महाप्राण व्यंजन अल्पप्राण थवो हरिवल्लभ भायाणी १२४-१३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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