Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 12
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 70
________________ 65 दहेरामांहे पइसता खडागइ छेदाउ सीस , खंगिल जाण्यउ मों भणी हिव करिस्यई बगसीस ॥११० ढाल-९ (केकइ वर मांगइ , एहनी) पुत्र-मरण दुसह सुणी सेठ छोड्या प्राण तुरत रे , भाग्य जाग्यउ पणमइ जे परनर विरूपउ चींतवइ ते पातइ पामइ झप्ति भाग्य जाग्यउ पलमइ ॥१११ एह वात राजा सुणी , तेडइ दामन्नक निज पास रे , भा० कीधउ सेठनउ गृहपति , हिव भोगवइ लीलविलास रे भा० ॥११२. भा० अनाबाध साधइ सदा , पुरषारथ तीने नित्त रे , भा० धरम अहोनिसि आदरइ मुख बोलइ भाषा सत्य रे भा० ॥११३. भा० न करइ खल संगति कहे दातार न शंकारइ संग रे , भा० पडिलाभइ मुनि सुधउ आहार वसन मनरंग रे भा० ॥११४. भा० सगुरु समीपइ सांभलइ सिधांततणा सुविचार रे , भा० दीन दुखी जन्मउ धरइ अनेक करइ उपगार रे भा० ॥११५. भा० इम उत्तमि मारगि चालतां एक दिन इक भट्ट सुजाण रे , भा० आवि भणइ गाथाइ इसी , तिण रंज्यउ सुणउ प्रमाण रे भा० । ॥११६. भा० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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