Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 12
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 125
________________ 120 कर्ता संपादक अनु सं. - पत्र कृति * व्रण संस्कृत फग्गुकाव्यो ० नाभेय जिन स्तवन ३ । १२-१४ ० नाभेय स्तवन ३।६-९ श्री यशो- पं. शीलचन्द्र- विजयवाचक विजय गणि जगद्गुरु पं. श्री शील- श्री हीर- चन्द्रविजय विजय सूरि गणि वाचक श्री पं. श्री शील- सकलचन्द्र चन्द्रविजय गणि ऋषभदास मुनि भुवनचन्द्र ३ । १०-११ ० श्री सीमंधर जिन स्तवन * त्रंबावती तीर्थमाल ८। ६२-६९ ह. भायाणी ८।१३२ * दसमी विश्व संस्कृत परिषदमां जैन विभागमां रजू थयेल निबंधो * दामनक कुलपुत्रकरास * 'द्वयाश्रय' काव्यना एक पद्यनी शंकास्पद वृत्ति परत्वे विचारणा ज्ञानधर्म कल्पना के. शेठ १२ । ४९-७० शीलचन्द्रविजय २ । ५०-५१ गणि ह. भायाणी * धर्ममहिमा एक सुभाषित * धर्मरत्न करंडक * धर्मसूरि बारमासा बारहनाव (प्राचीन गूर्जर काव्य) ह. भायाणी रमणीक शाह ३ । ४३-४४ २ । ६३-६८ २। ६९-७७ अज्ञात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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