Book Title: Antkruddashanga Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 270
________________ १९८ अन्तकृतदशाङ्गसूत्रे कालेन 'आसत्थे समाणे' आस्वस्थः सचेष्टः सन् 'उठेइ' उत्तिष्ठति, 'उहित्ता' उत्थाय 'सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी' सुदर्शनं श्रमणोपासकम् एवमवदन'तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! के ?' यूयं खलु देवानुमियाः ! के ? 'कहि वा संपत्थिया' क वा संपस्थिताः ? =कुत्र गन्तुमुद्यताः? 'तए णं' ततः खलु ‘से सुदंसणे समणोवासए अजुणयं मालागारं एवं वयासी' स सुदर्शनः श्रमणोपासकः अर्जुनकं मालाकारम् एवमवदत् - 'एवं खलु देवाणुप्पिया!' एवं खलु हे देवानुप्रिय ! 'अहं सुदंसणे णामं समणोवासए अभिगयजीवाजीवे' अहं सुदर्शनो नाम श्रमणोपासकोऽभिगतजीवाजीवः 'गुणसिलए चेइए' गुणशिलके चैत्ये 'समणं भगवं महावीर' श्रमणं भगवन्तं महावीरं 'वंदिउं' वन्दितुं 'संपढिए' संपस्थितः = प्रचलितः ॥ मू० १५ ॥ ॥ मूलम् ॥ तए णं से अज्जुणए मालागारे सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी-तं इच्छामिणं देवाणुप्पिया! अहमवि तुमए सद्धि समणं भगवं महावीरं वंदित्तए जाव पज्जुवासित्तए, अहासुहं देवाणुप्पिया!। तए णं से सुदंसणे समणोवासए अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धिं जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धिं समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव होकर खडा हुआ और सुदर्शन श्रमणोपासक से इस प्रकार बोलाहे देवानुप्रिय ! आप कौन हैं ? और कहाँ जा रहे हैं ? यह सुनकर सुदर्शन श्रमणोपासक ने अर्जुनमाली से इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रिय ! मैं जीवादि नौ तत्त्वों को जाननेवाला सुदर्शन-नामक श्रमणोपासक है और मैं गुणशिलक उद्यान में पधारे हुए श्रमण भगवान महावीर को वन्दना-नमस्कार करने के लिये जा रहा થયા, જેથી તે અજુનમાલી ડા સમય પછી સ્વસ્થ થઈને ઉભે થયે અને સુદર્શન શ્રમણોપાસકને આ પ્રમાણે કહ્યું હે દેવાનુપ્રિય! આપ કેણ છે? અને ક્યાં જઈ રહ્યા છે? આ ાંભળી સુદર્શન શ્રમણોપાસકે અનમાલીને કહ્યું–હે દેવાનુપ્રિય ! જીવાદિ નવ તને જાણવાવાળો સુદર્શન નામે શ્રમણોપાસક છું, અને હું ગુણશિલક ઉદ્યાનમાં પધારેલા શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદના નમસ્કાર કરવા જઈ રહ્યો છું. (સૂ) ૧૫).

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