Book Title: Antkruddashanga Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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२५२
अन्तकृत दशाङ्गसूत्रे
॥ सूलम् ॥ raar atree अज्झयणस्स । एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी, पुण्णभद्दे चेइए, कोणि राया । तत्थ णं सेणियस्स रण्णो भज्जा कोणियस्स रण्णो माउया सुकाली नामं देवी होत्था । जहा काली हा सुकाली वणिक्खता जाव बहूहिं चउत्थ जाव अप्पाणं भावेाणी विहरs । तए णं सा सुकाली अज्जा अण्णया कयाई जेणेव अज्जचंदणा अजा जाव इच्छामि णं अजाओ ! तुम्भेहिं अब्भुणुष्णाया समाणी कणगावलीतवोकम्मं उवसंपजित्ताणं विहरित । एवं जहा रयणावली तहा कणगावलीवि, णवरं तिसु ठाणेसु अट्टमाई करेइ, जहा रयणावलीए छट्टाई, एक्काए परिवाडीए संवच्छरो पंच मासा अट्ठारस दिवसा, सेसं तहेव । नव वासा परियाओ जाव सिद्धा ॥ सू० ८ ॥ [ सुकालीणामं बीयमज्झयणं समत्तं ]
॥ टीका ॥
'उक्खेवओ' इत्यादि । 'उक्खेवओ वीयस्स अज्झयणस्स' उत्क्षेपको द्वितीयस्य अध्ययनस्य, उत्क्षेपकः = प्रारम्भवाक्यं, 'यदि खलु भदन्त !" [द्वितीय अध्ययन]
द्वितीय अध्ययन का आरम्भ करते हैं- जम्बू स्वामीने सुधर्मा स्वामी से पूछा - हे भदन्त ! भगवान महावीर के द्वारा प्ररूपित अन्तकृत के आठवें वर्ग के प्रथम अध्ययन का भाव मैंने आपके मुख से सुना, अब इसके बाद भगवानने द्वितीय अध्ययन में किस भावका निरूपण किया है ?
[ द्वितीय अध्ययन ]
દ્વિતીય અધ્યયનના પ્રારંભ કરીએ છીએ. જંબૂ સ્વામીએ સુધર્માં સ્વામીને પૂછ્યુંભદન્ત ! ભગવાન મહાવીર દ્વારા પ્રરૂપિત અન્તકૃતના આર્ટમા વર્ગના પ્રથમ અધ્યયનના ભાવ મેં આપના મુખથી સાંભળ્યેા. હવે તે પછી ભગવાને દ્વિતીય અધ્યયનમાં કયા ભાવનું નિરૂપણ કર્યું છે?

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