Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj
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[३४]
माचारंग- मूळ तथा भान्तर
पकायपणेसु वा उग्घाययणेसु वा सेयणवहां वा अण्णयरस वा तह पगा रंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा । (९४३)
से भिक्खू वा [२] सेज्पुण थीडलं जाणेज्जा - गवियासु वा मट्टियखाणियासु, णवियासु वा गोप्पलेहियासु गवादणीसु वा, खणीसुवा, अण्ण यसि वा तहप्पगारसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवर्ण वोसिरेला 1, (९४४)
१
से भिक्खु वा सेज्पुण थंडिलं नाणेज्जा : - डागवच्चांस ' वा, सागवांसि वा, मूलगवच्चांस वा, हत्थंकरवच्चसि वा, अण्णयरांस वा तहपगारीसे थंडिलांस णो उच्चारप सवर्ण वोसिरेज्जा । (९४५)
M
से भिक्खू वा [२] सेज्जंपुण थंडिलं जाणेज्जा — असणवणासे वा, सणवणंसि वा, धायईवणंसि वा, केयईवर्णसि वा अंबवणसि वा, असो'गवणास वा, नागवणंसि वा, पुण्णागवणांसे वा, चुष्णगवर्णसि वा, अण्ण यरेसु वा तहप्पगारे पत्तोवएसु वा, पुप्फोवएस वा, फलोवएस वा, बीओवएस वा, हरिओएस वा, णो उच्चारासवणं वोसिरेज्जा । [ ९४६ ] १ डालप्रधानशाकं तइति.
वंशपरंपरायी चालता आवेला पूजनीय स्थऴोमां, के पाणी सींचवानी नीक विगेरे स्थळ खरच पाणी नहि करवां [९४७]
साधु अथवा साध्वी माटींनी नवी खाणोमां, गायोंने परवाना नवा गौचर स्थळोम, के खाणोमां खरच पाणी नहि करवां [९४४]
साधु अथवा साध्वी दाळवाळा स्थळामां, शाकचाळा स्थळोमां के मूळादि कंदवाळा स्थळोमां खरच पाणी नहि करवां [२४५] -
साधु अथवा साध्वीए बीयांना वनमां, सपना वनमां, घाउडाना वनमां, केतकीना वनमां, आंवाना बनमां, अशोकना वनमां, नागना वनमां, पुन्नागना बनमां, चूर्णकना वनमां, अथवा एवी जातना बीजां पत्र पुष्प फळ वीज तथा
लोनरी सहित स्थळामां खरच पाणी नहि करवां [९:४६] .

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