Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj

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Page 398
________________ [८४] अध्ययन चोवीसमुं. मणं परिजाणाति से णिगंथे; जेय मणे अपावते ति दोच्चा भावणा। (१०३२) अहावरा तचा भावणा:-वतिं परिजाणाति से णिग्गंथे; जाय वती पाविया सावज्जा सकिरिया जाव भूतोवघाइया तहप्पगारं बई णो उच्चहिज्जा । वइं परिजाणाइ से णिगंथे; जाय वइ अपाविय ति तच्चा भावणा । (१०३३) .. अहावरा चउत्था भावणा:-आयाणभडणिक्खवणासभिए से णिगंथे, णो अणायाणभंडणिक्खेवणासमिए णिगंथे; केवली बूया-आयाणभंडणिक्खेवणाअसमिए णिग्गंथे पाणाई भूयाइं जीवाइं सत्ताई अभिहणेज्ज वा जाव उद्दवेज वा । आयाणभंडणिक्खेवणासमिए से णिग्गंथे, णो आयाणभंडणिस्खेवणाअसलिए त्ति चउत्था भावणा । (१०३४) अहावरा पंचमा भावणा:-आलोइयपाणभोई से णिग्गथे, जो नहि धारखं एम मन जाणीने पापरहित मन धार, ए वीजी भावना. (१०३२) । त्रीजी भावना ए के निग्रंथे वचन ओलखवू एटले के जे वचन पाप भरखें सदोप, (मंडी) क्रियावालं, यावत् भूतोपयातक होय -ते, वचन नहि उच्चर. एम वचन जाणीने पापरहित वचन उचर. ए त्रीजी भावना. (१०३३) चोथी भावना ए के निग्रंथे भंडोपकरण लेतां राखता समिति सहित यह वर्ग, पण रहितपणे न वर्ग. कमके केवली कहे छे के आदानमांडानिक्षेपणासमिति-रहित निग्रंय प्राणादिकनो घात विगैरे करतो रहे छे. माटे निवे समितिसहित धइ वर्गवं ए चाथी भावना. [१०३४] पांचमी भावना ग के निग्रंथे आहारपाणी जोइने वापरबा, वगर जाए, न

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