Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj
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अध्ययन चोवीशमुं. __ [३८९] अहावरा तचा भावणा:-णिगंथे णं उग्गहसि उग्गाहितसि एत्तावताव उम्गहणसीलए पिया; केवली बूया-णिगंथेणं उग्गहसि उ. गहितसि एन्तावताव अणोरगहणसीले अदिणं गिण्हेज्जा । णिगंथेणं उग्गहसि उग्गहिसि एतावताव उग्गहणसीलए सिय ति तचा भावणा। (१०५०)
अहावरा चउत्था आत्रणा:-णिगंथेणं उग्गहसि उग्गहियसि अभिक्खणं [२] उग्गहणसीलए सिया; केवल, बूया-ग्गिंथेण उग्गहांस उग्गहियसि अभिक्खणं [२] अगोग्गहणतीले अदिण्णं गिण्हेज्जा । णिग्गंथे उग्गहसि उग्गहियंसि अभिक्खणं [२] उग्गहणसीलए सिय त्ति चउत्था भावणा । (१०५१)
अहावरा पंचमा भावणा:-अगुवीइमितोगहजाती से णिग्गंथे साहम्मिएस, णो अपणुवीइमिउग्गहजाती; केवली व्या-अणणुवीइमिमगहजाती से णिगंथे साहम्भिएसु अदिणं उगिण्हेजा। अणुवीइमितो
त्रीजी भावना ए के निथे अवग्रह यागतां प्रमाण सहित (काळक्षेत्रनी हदवांधी) अवग्रहं लेबो. केमके केवळी कहे छे के प्रयाण बिना अवग्रह लेनार निग्रंथ अदत्त लेनार थइ जाय; माटे प्रयाण सहित अवह लेवो. ए त्रीजी भावना [१०५०] ।
चोधी भावना ए के निर्माथे अवग्रह मागतां वारंवार हद बांधनार थर्बु, केमो केवळी को छे के वारंवार हद नहि बांधनार पुरुष अदत्त लेनार थइ जाय. माटे वारंवार हद अंधनार ई. ए चाची भावना. [१०५१]
पांची भावना ए के विचारीने पाताना माधर्मिक पासेथी पण परिमित अवग्रह मागयो. केमके वेवळी कहेछ के तेम न करनार निग्रंथ अदत्त लेनार थइ जाय. माटे साधर्मिक पासेथी पण विचाराने परिमित अवग्रह मागवो, नहि के बगर विचारे

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