Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj
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. : अध्ययन पचीशमः ____ [३९९]
तुदति बायाहि अभिद्दवं णरा 'सरेहि संगामगय व कुजेर - २ (१०८२) तहप्पगारेहिं जणहिं हीलिए, मसइफासा फरुसा' उदीरिया तितिखए णाणि अदुट्टचेतसा,
गिरिव्य वातेण ण संपवेवए. ३ (१०८३) (रूप्यदृष्टाताधिकार) उवेहमाणे कुसलेहि संवसे,
अकंत दुक्खा तस थावरा दुही अलूसए सव्वसहे महामुणी। तहाहि से सुरसमणे समाहिए४ ४ (१०८४)
१ अभिद्रवंति लेष्टुप्रहारादिभिः २ गीतार्थः सह ३ अक्रांतदुः खा अनभिप्रेतदुःखाः ४ समाख्यातः
२ [१०८२]
तने नरो वाणी तथा महारे संग्रामना हाथीपरे ज मारे. तेवा जनो 'जो अपकीर्ति बोले, कठोर शब्दादिकथी उखोले ज्ञानी गदुष्टाशयथी सहे ते, धुने नहि पर्वत जेम वाते. मध्यस्थमा रहि विज्ञसाय
हणे नं दुःखी बस थावरा जे, . “दुःखोधी वीता गणि, ते महामुनि
क्षमानिधि उत्तम साधु भाख्यो
३ [१०८३]
रुप्याधिकार
...
४ [१०८४]

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