Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj

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Page 413
________________ - - - -- अध्ययन पंचीशम. तुदति बोयाहिं अभिहवं णरा सरोहि संगामगयं व कुंजरं . २ (१०८२) तहप्पगारेहिं जणहिं हीलिए, , ससईफासा फरुसा उदीरिया तितिक्रखए णाणि अदुट्ठचेतसा, गिरिव्व वातेणं ण संपवेवए. ३ (१०८३) (रूप्यदृष्टाताधिकार) उवेहमाणे कुसलेहि संवसे, अकंत दुक्खा तस थावरा दुही अल्सए संब्बसहे महामुणी। 'तहाहि से सुरसमणे समाहिए ४ (१०८४) १ अभिद्रवंति लेप्टुपहारादिभिः २ गीताथैः सह ३ अक्रांतदुः खा अनभिप्रेतदुःखाः ४ समाख्यातः २ [१०८२] तेने नरों वाणी तथा महारे • संग्रागेना होथीपरे ज मारे. तेवा जनो 'जो अपकीर्ति घोले, कठोर शब्दादिकथी उखोले ज्ञानी अदुष्टाशयंथी सहे ते, 'ध्रुने नहि पर्वत जेम वाते. मध्यस्थमा रहि विज्ञसाये हणे न दुःखी बस थायरा जे, दुःखोथी पीता. गणि, ते महामुनि क्षमानिधि उत्तम साधु माख्यो. [१०८३] हप्याधिकार ४[१०८४]

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