Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj
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[३९८]
(अनित्यत्वाधिकारः) अणिन्च मात्रास मुत्रेति जंतुणो, पलोयए' सुच्च' मिदं अणुत्तरं ;
(पर्वताधिकारः)
i
I
आचारांग - मूळ तथा भाषान्तर
चतुर्थी चूला :
विमुक्ति नामकं पंचविंश मध्ययनम् ..
i :
• विऊसिरे विन्नु" अगार बंधणं
४
अभीरु आरंभपरिग्गर्ह चएं तहोगहं भिक्खु मणंत संजयं अणेलिसं चित्र चरंत भेसणं
अनंतेषु एकेंद्रियादिपुसंयतं ७ विज्ञ्
१ प्रलोकयेत् २ श्रुत्वा ३ प्रवचनं ४ व्युत्सृजेत् ५ विज्ञ: ६
१
अनित्यत्वा •
14
अध्ययन पशj. विमुक्ति
1
(उपजाति छंद)
अनित्य आवास' फरेज जंतुओं सिद्धांत ए सांभाळने विचारो; अगारनुं बंधन छोडी विज्ञा, परिग्रहारंभ (सदा ) निवारो. खरा अंन जीवदयाळु भिक्षुओ उत्कृष्ट ने विन फेरे नपाशी;
पर्वताधिकार
१ अनित्य एकेंद्रियादि गतिओमां. २ घर. (family)
; (१०८१)
...
१ [१०८१]

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