Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj

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Page 419
________________ अध्ययन पचीसमुं. [४०३] से हुणिरालंबणे अप्पतिहे कलंकली भावपहं' विमुच्चइ. १२ त्ति बेमि । [१०९२ इत्याचारसूत्रं नाम प्रथमांगं समाप्तं. [ग्रंथागू. २५००] १ संसापर्यटनात्. निराश ने अप्रतिबद्ध जेह संसार भारी अटके न तेह. १२ [१०९२] (आचारांग सूत्रहुँ यापान्तर समाप्त.)

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