Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj
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[३८८]
आचारांग-मूळ तथा भापान्तर त्तमंतं वा अचित्तनंतं वा णेव सयं अदिगं गिण्हेज्जा, बल्गेहिं अदिगं गेण्हावेजा, अगंपि अदिगं गिण्हतं ग समणुजाणज्जा, जावजीसए, जाव वोसिरामि । (१.०४६)
तस्सिसाओ पंच भावणाओ भवंतिः-(१०४७)
तथिमा पढमा भावणा अणुशीइ मिउगहजाती से गिरने, णो अणणुवीइमिउग्गहजाई से णिग्गंथे केवली बूया-अगणुवीइमि हो- ' गहजाती से णिग्गंवे अदिण्णं गिण्हेज्जा। अणवीइ मिउगगहजाती से णिगंथे, जो अगणवीइसितोगहजाइ ति पढमा भावणा । (१०४८)
अहावरा दोचा भावणा:-अजगवियपाणलोयणभोती से निगंथे णो अपणुप्णवियपागमायणयोई केली ब्या-अगमुण्मवियपाणसोयणभोई से णिग्गंथे अदिवं भुजेज्जा। तम्हा अगुग्नवियपाणभोयणभाई से णिगथे, जो अणणुण्णवियपाणभोयणमोती ति दोबा भावणा । (२०४९)
यावज्जीव त्रिविधे एटले मन-वचन-कायाए करी लउँ न, लेबरावू नहि, लेनारने अनुमत करं नहि तथा अदत्तादानने पडिको यावत् तेवा स्त्रमादा दोसराबुंछु." [१०४६]
तेनी आ पांच भावनाओ छ:- [१०४७]
त्यां पेहेली भावना आ के निथे विचाशने परिमित अन्नाह गायो, पण वंगर विचारे अपरिमित्त अनाद न मागको. केमके केवळी कहे छ के नगर विचारे अपरिमित अन्नद माननार निीय अदत्त लेनार थइ जाय. माटे विचारीने परिमित अवग्रह मागयो. ए पहेली भावना. [१०४८]
वीजी भावना ए के निथे रज. मेळ्याने आहारपानी वापरबा, पण रजा मेळव्या वगर न दापरवा. वायके केवळी कहे छे के बगर रजा भेळवे आहारपाणी वापरनार निम्रय अदत्त लेनार थइ पंडे माटे रजा मेळवीने आहारपाणी वापरवा ए बीजी भावना. ] १०४९
१गुरु अगर पंडरानी.

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