Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj

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Page 409
________________ अध्ययन चोवीसमुं... [३९५१ इं अग्घायइ; मणुष्णामणुणेहि गंधेहिं णो सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, जाव जो विणिग्धाय मावज्जेज्जा; केवली बूया_मणुग्णाभणुण्णेहिं गंधेहि. सजमाणे रज्जमाणे जाव विणिग्याय मावज्जमाणे संतिभेदा सतिविभंगा जाव भंसेज्जा । (१०७०) णो सक्का गंध मग्घाउं, णासाविसय मागयं; रागदासो उ जे तत्थ, 'तं भिक्खू परिवज्जए. १ (१०७१) घाणओ जीवो मणुण्णामणुण्णाई गंधाइ अग्धायति० तच्चा भा-- वणा । (२०७२) ...अहावरा चउत्था भावणाः-जिब्भाओ जीवो मणुणामणुगाई रसाइं अस्सादेति, मगुग्गामणुण्णेहि रसेहिं णो रज्जेज्जा, जाव णो विणिग्वाय मात्रज्जेजा; केवली बूया-णिग्गंधेणं मणुष्णामणुष्णेहिं. रसेहि सज्जमाणे जाव विणिग्याय"मावजमाणे संतिभेदा जाव भेसेज्जा ।। (१०७३) के यावद् विवेक भ्रष्ट न. थर्बु, केमके केवळी कहे छ के सेम धतां शांति भंग थवाथी यावत् धर्म भ्रष्ट थनाय छे. [१०७०] नाले गंध पढता तो अटकावाय ना कदि । किंतु त्यां राग घेघोने, परिहार करे यति. १ [१०७१] । - एम नाकयी जीवे भला डा गंध सूधी रागदेष न करदी ए बीजी भावना २०७२] चोथी भावना के जीमधी जीये भला हा रस चालनां तेना भावत के विवकभ्रष्ट न घई, केय के केळी दोहे के तग पता लतिभा कापी धर्मद धवाय छे.[१०७ .. .7

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