Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj

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Page 405
________________ अध्ययन चोवीस मुं. [३९१] अभिक्खणं [२] इत्थीगं कई कहए सियत्ति मँसेज्जा | णो णिग्गंथे पढमा भावणा । ( १०५६) अहावरा दोच्चा भावणा:- णो णिगंथे इत्थीणं मणोहराइ इंदियाई आलोएत्तए णिज्झाइत्तए सिया; केवली बूया - णिग्गंथे णं मणोहराई इंदियाई आलोएमाणे णिज्झाएमाणे संतिभंगा संतिविभंगा जाव धम्माओ मँसेज्जा । जो णिग्गंथे इत्थीण मणोहसइं इंदियाई आलोएत्तए गिज्झाइत्तए सियत्ति दोच्चा भावणा । ( १०५७ ) अहावरा तच्चा भावणा:-णो णिग्गंथे इत्थीणं पुव्वरयाई पुत्रकीलियाई सुमरित्तए सिया; केवली बूया - णिग्गंथे णं इत्थीणं पुव्वरयाई पुव्वकीलियाई सरमाणे संतिभेया जाव भंसेज्जा । जो निन्गंथे पुव्यरयाई पुब्वकीलियाई सरिए सियति तच्चा भावणा । ( १०५८) तिथी तथा वाभाति धर्म भ्रष्ट थाय. माटे निर्ग्रथे वारंवार स्त्रीकथाकारक न ए पेली भावना. (१०५६) 1 वीजी भावना ए के निर्ग्रथे स्त्रीओनी मनोहर इंद्रियो जोवी चिंतaat नहि केमके केवळी कहे छे के तेम करतां शांतिभंग थवाथी धर्मभ्रष्ट धवाय. माटे निग्रंथे ओनी मनोहर इंद्रियो जोबी तपासवी नहि ए वीजी भावना. (१०५७) त्रीजी भावना ए के निर्ग्रये स्त्रीओ साथ पूरे रमेली रमक्रीडाओ याद न करवी. केमके केवळी कहे छे के ते याद करतां शांतिभंग थवाथी भ्रष्ट - चाय. माटे निर्प्रये स्त्रीओ साथे रमेली रमतगमत संभारवी नहि ए त्रीजी भावना (२०५८) १ सीओ सुंदर रूप. (forw9)

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