Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj

View full book text
Previous | Next

Page 378
________________ [ ३६४ ] आचारांग - मूळ तथा भाषान्तर. तओणं समणे भगवं महावीरे अणुकंपंतेणं देवेणं " जीय मेयं" ति कडु, जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोयबहुले, तस्सणं आसोयबहुलरस तेरसीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं णक्खत्तेणं जोगोवगतेणं, बासीतीहिं रातिदिएहिं वीतिकंतेहिं तेसितिमस्स रातिंदियस्स परियाए वहमाणे दाहिण-माहणकुंडपुरसणिवेसाओ उत्तर -- खत्तिय कुडपुर साणिवेसंसि, णाया णं खचियाणं सिद्धत्थस्स खतियरस कासवगोतस्स तिसलाए खत्तियाणीए वासिहसगोताए असुभाणं पोग्गलाणं अवहारं करेता सुभाणं पोग्गलाणं पक्खेवं करेत्ता कुच्छिसि गब्र्भ साहरिए । जे विय तिसलाए खत्तियाणीएकुच्छिसि गमे, तंपिय दाहिण - माहणकुंडपुरसंणिवेसंसि उस भक्तरस माहणस्स कोडालसगोत्तस्स देवाणंदाए माहणीए जालंधरायणसगोत्ताए कुच्छिसि गमं साहरिए । [९९३] समणे भगवं महावीरे तिष्णाणो गए यात्रि होत्था: - साहरिज्जि - स्सामि त्ति जाणइ, साहरिएमित्ति जाणइ; साहरिज्जमाणे वि जाणइ समपाउसो | [ ९९४ ] 14 त्यांरवाद श्रमण भगवान महावीरने अनुकंपावान एटले भक्तिवाळा देवताए पीताना जीत एटले हमेशना आचारने अनुसरी वर्षाऋतुमा त्रीजा मासे पांचमा पक्षे आसो वदि १३ना दिने उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रे व्यासी दिन बीत्या केडे त्यासीमा दिने दक्षिण ब्राह्मणकुंडपुर स्थानथी उत्तरमां आवेला क्षत्रियकुंडपुरस्थानमां शातवंशी काश्यपगोत्रीय सिद्धार्थ क्षत्रियना घरे वाशिष्टगोलवाळी विशला क्षत्रियाणीनी कूखे अशुभ पुद्गलो अपहरी शुभ पुद्गलोनो प्रक्षेप करी गर्भमां दाख'ल कर्या (९९३) आ वेळा पण श्रमण भगवान महावीर ॠणज्ञानवंत होवाथी हे आयुष्मन् श्रमणो, गर्भारमा मारुं संहरण थशे, थयुं, तथा थाय छे, ए त्रणे काळ जाणता. (९९४) 1

Loading...

Page Navigation
1 ... 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435