Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj

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Page 393
________________ [३७९] अध्ययन चोवीशk. पडिबज्जित्तु चरितं, अहोणिसिं सबपाणमूतहितं साहट लोमपुलया पयया देवा निसामोते. २१०१८] तओणं समणस्स भगवओ महावरिस्त सामाइयं खाओवसामिय चरित्तं पडिवन्नरस मणपज्जवणाणे णामं णाणे समुत्पन्ने; अड्डाइज्जेहिं दीहि, दोहिंय समुद्देहि सणीर्ण पचेंदियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाइं भावाई जाणेइ ; [१०१९] तओणं समणे भगवं महावीरे पव्वइते समाणे मित्तणाइसयणसंबंधिवग्गं पडिविसज्जेति, पडिविसजित्ता तओणं इस एयाख्वं अभिग्गहें आभागण्हइ “बारसवासाइं वोसट्टकार चत्तदेहे जे केइ उबसग्गा समुप्प-- ज्जति, तंजहा;-दिव्वा वा, माणुस्सा वा, तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुत्पन्ने समाणे सम्म सहिस्सानि खमिस्सामि अहियासइस्सामि ।" [१०२० जिनवर चारित्र लेता, हमेशा प्राण भूत हित कर्ताः । हर्पित पुलकित थइने, सावध थइ देवता मुणता. २ १०१८] ए रीते भगवाने लायोपामिक सामायिकचारित्र लीपापछी तेमने मनपर्यवज्ञान उत्पन्न थy; तेथी अढी द्वीप तथा वे समुद्ना पर्याप्त अने व्यकतमनवाळा संज्ञि पंचेद्रियोना मनोगत भाव जाणता लाग्या. [१०१९] पछी प्रनित थएला भगवाने मित्र, शाति, सगा, तथा संबंधिोने विसर्जित करी एवो अभिह लीधो के “चार वर्प लगी हुँ कायानी सार संभाळ नाहि करतांज कंह देव मटप्य के तिर्योत्तरपच उपसर्गो थशे, ते पधा एटी रीते सहीश, खगीग अने अहियान [१०२०] १ खपाश (sutler) -ra. . . ...

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