Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj
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आचारांग-मूळ तथा भाषान्तर
' तृतीया चूला. भावनाख्यं चतुर्विंशतितम मध्ययनम्.
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M940120
- तेणे कालेण तेणं समएणं, समणे भगवं महाबीरे पंचहत्थुत्तरे । यावि होत्थाः-हत्युत्तराहिं चुए-चइत्ता गम्भं वक्ते; हत्थुत्तराहिं गन्माओ गम्भं साहरिए; हत्युत्तराहिं जाए; हत्युत्तराहिं सव्वओ सबताए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए; हत्थुत्तराहि कसिणे पडिपुण्णे अ व्वाघाए निरादरणे अणंते अणुचरे केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे । साइणा भगवं परिनिव्वुए । [९९०]
१ हस्त उत्तरो यासा सुत्तरफाल्गुनीनां ता हस्तोत्तराः ताश्च पंचसु स्थानेषु संवृत्ता. यस्य स पंचहस्तोत्तरः
श्रीजी चूलिका अध्ययन चोबीसमुं
भावना
(महावीर चरित्र तथा पंच महावतानी भावनाओ.) ते काळे ते समये श्रमण भगवान् महावीरना संबंधे पांचवार उत्तराफाल्गु नी नक्षत्र आव्यु; ते एम के उत्तराफाल्गुनीमां गर्भयी गीतरगां संहराया, उत्तराफाल्गुनीयां जन्म्या, उत्तराफाल्गुनीमां सर्व (वस्तु) थी सर्वरीते (अलमा थइ) मुंडपणु धरी घरवास छोडी अगगार थया, अने उत्तराफाल्गुनीमांज संपूर्ण प्रतिपूर्ण व्यायानरहिन आवरणरहित अनंत उत्कृष्ठ केवळज्ञानदर्शन पाम्या, मात्र भगवान्, निर्वाण स्वालिनक्षत्रमा थy. [१०]

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