Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj

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Page 361
________________ अध्ययन वीशमुं. [३४७] धारेज्जा गमणाए । (९५०) से भिक्खू वा (२) अहावेगइयाइं सदाई सुणेति, तंजहा, तालसदाणि वा, कंसताललदाणि वा, लत्तिय १ सदाणि वा. गोहिय २ सहाणि वा, किरिकिरिय3 सदाणि वा, अण्णयराणि वा तहप्पगाराइं विरूवरू वाई तालसदाई कण्णसोवपडिपाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । [९५१] से भिक्खू वा (२) अहावेगइयाई सद्दाई सुणेति, तंजहा, संखसदाणि वा, वेणुसदाणि वा, वससहाणि वा, खरमुहीसदाणि वा, पिरिपिरियसदाणिं वा, अण्णयराइं वा तहप्पगाराई विरूवरूबाई सदाई झुसिराई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। [९५२ से भिक्खू वा [२] अहावेगइयाइं सदाई सुणेति, तंजहा, वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, जाव सराणि वा, सरपंतियाणि वा, सरस्सरपंति १ लत्तिका कंशिका. २ गोहिका भांडानांकक्षा. ३ किरिकिरिया वंशादिकंविका. दुकुल विगैरेना तत शब्दो सांभळया जई नहि. [९५०] साधु अथवा साध्वीए ताल, कंसताल,कंशिका, किरिकिरिका विगेरेना ताल,२ शब्दो सांभळवा जर्बु नहि. [९५१] साधु अथवा साध्वीर शंख, वेगु, वंग, खरमुखी, पिरपिरिका विगेरेना शुपिर' शब्दो सांभळवा जई नहि. [६.५२] साधु अथवा साध्वीए, खेतरोना क्यारटां, राइ, तळाव, विगेरे स्वळोगा १ सामान्य विस्तारना अवाजवाद र ताल पडता अवाजवाळा. ३ पोकळ अवाजवाळां

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