Book Title: Anekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06 Author(s): A N Upadhye Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 6
________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन का उल्लेख किया है। स्थानीय व्यापार के लिए प्रायः एक वृत्ति स्वीकार भले ही कर ली जाये, किन्तु उसे अच्छा चीज का अलग-अलग बाजार या हाट होता था। बडे- नही माना जाता था। बड़े व्यापारिक केन्द्र पेण्ठास्थान कहलाते थे। देश-देश के ग्यारहवे परिच्छेद में इस सम्पूर्ण सामग्री का विवेव्यापारी प्राकर इन पेण्ठास्थानो मे अपना रोजगार करते . थे। पेण्ठास्थानों का संचालन राज्य की ओर से होता था या किसी विशेष व्यक्ति द्वारा । इनमें व्यापारियो को दाया इनमें व्यापारियों को परिच्छेद बारह में यशस्तिलकमे उल्लिखित शस्त्रास्त्री हर तरह की सुविधा दी जाती थी। मध्ययुग मे जो व्या- का विवेचन है। मोमदेव ने छत्तीस प्रकार के शस्त्रास्त्रो पारिक प्रगति हुई उसमे इन मडियो का विशेष हाथ था। का उल्लेख किया है। इन उल्लेखो की एक बडी विशेषता यह है कि इनसे अधिकाश शस्त्रास्त्रो का स्वरूप भारतवर्ष मे व्यापार करने के लिए जिम प्रकार उनके प्रयोग करने के तरीके तथा कतिपय अन्य बातों पर विदेशी सार्थ पाते थे उसी प्रकार भारतीय सार्थ टाडा बाधकर विदेशी व्यापार के लिए निकलते थे । सोमदेव ने भी प्रकाश पड़ता है। धनुष, असिधेनुका, कर्तरी, कटार, कृपाण. खड्ग,कौक्षेयक, या करवाल, तरवारि, भुसुडी, ताम्रलिप्ति तथा सुवर्णद्वीप के व्यापार को जाने वाले सार्थों का उल्लेख किया है। मडलान, असिपत्र, प्रशनि, अकुश, कणय, परशु या कुठार, सोमदेव के युग मे वस्तु विनिमय तथा मृद्रा के मध्यम प्रास, कुन्त, भिन्दिपाल, करपत्र, गदा, दुम्फोट या मूसल, से विनिमय की प्रणाली थी। पिछड़े क्षेत्रो मे वस्तु विनि मुद्गर, परिध, दण्ड पट्टिस, चक्र, भ्रमिल, प्टि, लांगल, मय चलता था । मुद्राओं में सोमदेव ने निष्क, कापिण शक्ति, त्रिशल, शकु, पाश, वागुग, क्षेपणि हस्त तथा गोल घर के विषय में इस परिच्छेद मे पर्याप्त जानकारी दी तथा सुमन का उल्लेख किया है। निष्क वैदिक यग मे एक म्वर्णाभूपण था, किन्तु बाद मे एक नियत स्वर्ण मुद्रा बन गया । मनुस्मृति मे निष्क को चार-सुवर्ण या तीन मी तृतीय अध्याय में सब चार परिच्छेद है। इनम ललित बीस रत्ती के बराबर कहा गया है। कार्षापण चादी का कलानो तथा शिल्प विज्ञान विषयक सामग्री का विवेचन सिक्का था। मनुस्मृति में इसे रजत पुगण और धारण है। परिच्छेद एक में संगीत, वाद्ययन्त्र तथा नृत्यकला का कहा है । पुराण का वजन बत्तीस रत्ती होता था कार्षा- विवेचन है। सोमदेव ने यशोधर को गीतगन्धर्वचक्रवर्ती पण की फुटकर खरीज भी होती थी। सुवर्ण निष्क की कहा है। यशोधर का हस्तिपक, जिसकी ओर महागनी तरह एक सोने का सिक्का था। अनगढ सोने को हिरण्य प्राकष्ट हई, सगीत में माहिर था। संगीत और म्बर लहरी कहते थे और जब उसी के सिक्के ढाल लिए जाते तो वे का अनन्य सबध है। सोमदेव ने सप्त म्बगे का उल्लेख सुवर्ण कहलाते थे। मनुस्मृति के अनुसार सुवर्ण का वजन किया है। अस्सी रत्ती या सोलह माषा होता था। वाद्य यन्त्रो में यशस्तिलक के उल्लेख विशेष महत्त्व सोमदेव ने न्यास या धरोहर रखने का भी उल्लेख के हैं। वाद्यो के लिए मम्मिलित शब्द प्रातोद्य या। किया है। प्राचार, व्यवहार तथा विश्वास के लिए विश्रुत संगीतशास्त्र की तरह मोमदेव ने भी वाद्यो के घन, मूपिर, व्यक्ति के यहां न्यास रखा जाता था। यदि न्यास रखने नत और अवनद्ध, ये चार भेद बताये है। सोमदेव ने वाले की नियत खराब हो जाये और वह समझ ले कि तेईस वाद्य यन्त्रो की जानकारी दी है। शख, काहला, न्यास धर्ता के पास ऐसा कोई प्रमाण नही, जिसके आधार दुदुभि, पुष्कर, ढक्का, प्रानक, भम्भा ताल, करटा, पर वह कह सके कि उसने अमुक वस्तु उसके पास न्यास त्रिविला, डमरुक, रुंजा, घटा, वेणु, वीणा, भल्लरी, रखी है, तो वह न्यास को हडप जाता था। वल्लकी, पणव, मदग, भेरी, पटह और डिण्डिम, इन सभी भूति या सेवावृत्ति के विषय में लोगो की भावना के विषय में यशस्तिलक की सामग्री से पर्याप्त प्रकाश अच्छी नहीं थी। विवश होकर आजीविका के लिए सेवा- पड़ता है। सगीतशास्त्र के अन्य प्रन्थो के तुलनात्मकPage Navigation
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