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अनेकान्त ।
... [चैत्र, वीर निर्वाण सं०३४५६ :
याकि नहीं जिसके लिखे जानेकी बहुत बड़ी सम्भावना है उसमें छूट गया है । उसके सामने आने पर और भी है । यदि कोई टीका-टीप्पणी उपलब्ध है तो उसे भी कुछ बातों पर प्रकाश पड़नेकी संभावना है, और इस विशेष परिचयादिके द्वारा प्रकाशमें लाना चाहिये। लिये इस ग्रंथकी दूसरी प्रतियोंको खोजनेकी और भी
फिर भी इस ग्रंथके विषयमें इतना कह देनेमें तो ज्यादा ज़रूरत है । आशा है इसके लिये साहित्य प्रेमी कोई आपत्ति मालूम नहीं होती कि इसके सूत्र अर्थ- विद्वान् अपने अपने यहाँके शास्त्रभंडारोंको ज़रूर ही गौरवको लिये होने पर भी आकारमें छोटे, सुगम, कण्ठ खोजनेका प्रयत्न करेंगे और अपनी खोजके परिणामसे करने तथा याद रखनेमें आसान है, और उनसे तत्त्वार्थ- मुझे शीघ्र ही सूचित कर अनुगृहीत करेंगे। शास्त्र अथवा मोक्षशास्त्रका मूल विषय सूचनारूप में संक्षेपतः सामने प्राजाता है।
मूलग्रंथ और उसका अनुवादादिक ___ एक बात और भी प्रकट कर देनेकी है और वह नीचे मूल ग्रंथके सूत्रादिको उदधृत करते हुए जहाँ यह कि इस सूत्रग्रन्थके शुरू में प्रतिपाद्य विषय के सम्बंध- मूलका पाठ सष्टतया अशुद्ध जान पड़ा है वहाँ उसके को व्यक्त करता हुआ एक पद्य मंगलाचरणका है,परन्तु स्थान पर वह पाठ दे दिया गया है जो अपने को शुद्ध अन्तमें ग्रंथकी समाप्ति श्रादिका सूचक कोई पद्य नहीं है। प्रतीत हुआ है और ग्रन्थप्रतिमें पाये जाने वाले अशुद्ध , ऐसे गद्यात्मक सूत्रग्रंथों में जिनका प्रारम्भ मंगलाचर- पाठको फुटनोट में दिखला दिया है, जिससे वस्तुस्थितिके सादिके रूपमें किसी पद्य-द्वारा होता है उनके अन्तमें ठीक समझने में कोई प्रकारका भ्रम न रहे और न मूल भी कोई पद्य समाप्ति आदिका जरूर होता है, ऐसा सूत्रोंके पढ़ने तथा समझने में कोई दिक्कत ही उपस्थित अक्सर देखने में आया है। उदाहरणके लिये परीक्षा- होवे । परन्तु वकारके स्थान पर बकार और बकारके मुखसूत्र, न्यायदीपिका और राजवार्तिकको ले सकते हैं, स्थान पर वकार बनानेकी जिन अशुद्धियोंको ऊपर इन ग्रंथोंमें आदिके समान अन्त में भी एक एक पद्य सूचित किया जा चुका है उन्हें फुटनोटोंमें दिखलाने की पाया जाता है। जिन ग्रंथ-प्रतियोंमें वह उपलब्ध नहीं ज़रूरत नहीं समझी गई। इसी तरह संधि तथा पद-विभिहोता उनमें वह लिखनेसे छूट गया है, जैसे कि न्याय- नतादिके संकेतचिन्होंको भी देनेकी ज़रूरत नहीं समझी दीपिका और राजवार्तिककी मुद्रित प्रतियोंमें अन्तका गई। इसके अतिरिक्त जो अक्षर सूत्रोंमें छूटे हुए जान पद्य छट गया है, उसे दूसरी हस्तलिखित प्रतियों पर . पड़े हैं उन्हें सूत्रों के साथ ही[ ] इस प्रकारके से खोजकर प्रकट किया जा चुका है* । ऐसी स्थिति कोष्ठकके भीतर रख दिया है और जो पाठ अधिक होते हुए इस सूत्रग्रंथके अन्तमें भी कमसे कम एक . संभाव्य प्रतीत हुए हैं उन्हें प्रश्नांक के साथ (...?) ऐसे पद्यक होनेकी बहुत बड़ी सम्भावना है। मेरे ख्यालसे कोष्ठकमें देदिया है। पाई(1) दो पाई (1) के विरामचिन्ह वह पद्य इस ग्रंथप्रतिमें अथवा जिसपरसे यह प्रतिकी गई ग्रंथमें लगे हुए नहीं हैं, परंतु उनके लिये स्थान छुटा
देखो, प्रथम वर्षके अनेकान्त' की वी किरण हुअा है, उन्हें भी यहां दे दिया है। और इस तरह में पुरानी बातोंकी खोज
मूल ग्रंथको उसके असली रूप में पाठकोंके सामने • २७२।
रखनेका भरसक यत्न किया गया है। फिर भी यदि
१३ सूखमा