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वर्ष ३, किरण ६
प्रभाचन्द्रका तत्वार्थसूत्र
यहाँ जम्ब द्वीपका कोई परिमाण न देकर मेरुका ही शन्दसे आगमवर्णित सिंधु, रोहित, रोहितास्या, हरित्, परिमाण दिया है। जम्बूद्वीप और मेरुपर्वत दोनों ही हरिकान्ता, सीता, सीतोदा, नारी, नरकान्ता, सुवर्णकूला, एक एक लाख योजनके हैं ।
रूप्यकूला,रक्ता, रक्तोदा, इन १३ नदियोंका संग्रह किया हिमवत्प्रमुखाः षट्कुलनगाः ॥ ५ ॥ गया है । उमास्वातिने अपने 'गंगासिंधु आदि सूत्र 'हिमवान्को मदि लेकर षट् कुबाचन हैं।' नं० २०1 में इन सबका नामोल्लेख-पूर्वक संग्रह किया
यहां छहकी संख्याका निर्देश करनेसे 'प्रमुख' है। इसीसे वह सूत्र बड़ा हो गया है। शन्दके द्वारा महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मी भरतादीनि वर्षाणि ॥ ९॥ शिखरी इन पांच कुलाचलोंका संग्रह किया गया है, 'भरत भादि क्षेत्र हैं।' क्योंकि आगममें हिमवान्-सहित छह पर्वतोंका वर्णन यहां 'श्रादि' शन्दसे हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, है जो जम्बूद्वीपादिकमें स्थित हैं । उमास्वातिने ११ वें हैरण्यवत और ऐरावत नामके छह क्षेत्रोंका संग्रह किया सूत्रमें उन सबका नाम-सहित संग्रह किया है। गया है । षट् कुलाचलोंसे विभाजित होनेके कारण जम्बू
तेषु पद्मादयो हदाः॥६॥ दीपके क्षेत्रोंकी संख्या सात होती है। यह संत्र और 'उन कुणाचलों पर 'पद्म' मादि वह हैं।' उमास्वातिका १० वाँ ('भरतहैमवत हरिविदेहरम्वकोर
यहां 'आदि' शन्दसे महापद्म, तिगिंछ, केसरी एयवतैरावतवर्षाः क्षेत्राणि') सूत्र एक ही आशयके हैं। महापण्डरीक और पुण्डरीक नामके पांच द्रहोंका संग्रह . त्रिविधा भोगभूमयः ॥१०॥ किया गया है, जो शेष महाहिमवान् श्रादि कुलाचलों भोग भूमियां तीन प्रकारकी होती है।' पर स्थित है । और जिनका उमास्वातिने अपने १४ वे यहाँ जघन्य, मध्यम और उत्तम ऐसे तीन प्रकार 'पद्ममहापद्म' आदि सूत्रमें उल्लेख किया है। की भोगभूमियोंका निर्देश है। हैमवत-हैरण्यवत क्षेत्रों
तन्मध्ये श्यादयो देव्यः ॥७॥ में जघन्य भोगभूमि, हरि-रम्यकक्षेत्रोंमें मध्यमभोगभूमि 'उन द्रहों के मध्यमें श्री आदि देवियां रहती हैं।' और विदेहक्षेत्र स्थित देवकुरु-उत्तरकुरुमें उत्तमकर्म
यहां 'आदि' शब्दसे आगम-वर्णित ही, धति, भूमिकी व्यवस्था है। उमास्वातिके तत्त्वार्थसूत्रमें यद्यपि कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी नामकी पांच देवियोंका संग्रह इस प्रकारका कोई स्वतन्त्र सूत्र नहीं है परन्तु उसके किया गया है, जिन्हें उमास्वातिने अपने १६ वें सत्रमें 'एकद्वित्रिपल्योपम' आदि सूत्र नं० १६ और 'तयोत्तसः'. द्रह स्थित कमलोंमें निवास करने वाली बतलाया है। नामके सूत्र नं० २०७ में यह सब आशय संनिहित है। तेभ्योस गंगादयश्चतुर्दशमहानद्यः ॥ ८॥ भरतैरावतेषु षद्कालाः ॥११॥
'उन (बहों) से गंगादिक १४ महा नदियां निक, भरत और ऐरावत नामके क्षेत्रोंमें छह काल, वर्तते. लती हैं। यहां १४ की संख्याके निर्देशके साथ 'श्रादि' -
श्वेताम्बरीय सूत्रपाठमें यह सूत्र ही नहीं है।'' * श्वेताम्बरीय सूत्रपाठमें ये दोनों ही सूत्र नहीं है।
तस्माद।