Book Title: Anekant 1940 04
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 47
________________ : वर्ष ३, किरण ६] वीरका जीवन-मार्ग : - अन्दर बैठ निर्वात हो ज्ञान दीपक जगाना होगा। दर्शन सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्रका मार्ग है । ज्ञान प्रकाशको उसीके देखनेमें लगाना होगा। जिसके यह है वह विधिनिषेधात्मक सिद्धि मार्ग, जो गहरेसे लिये यह सब देखना जानना है-ढूंढना भालना है। गहरे बैठे हुये संस्कारोंको निर्जीर्ण कर विध्वंस कर उसीकी भावनाओंको सुनना और समझना होगा। देता है । जो सोई हुई अात्म-शक्तियोंको जगा देता जिसके लिये यह सब उद्यम हैं-पुरुषार्थ हैं । जो निर- है, उन्हें भावनासे निकाल साक्षात् भाव बना देता है। न्तर पुकारता रहता है "मैं अजर हूँ-अमर हूँ, तैजस- यह मार्ग बहुत कठिन है। इसके लिये अनेक प्राकृज्योतिमान् हूँ, सुन्दर-मधुर हूँ, महान् और सम्पूर्ण तिक और मानुषिक विपदाओं और करतानोंको सहन करना पड़ता है, अनेक शारीरिक और मानसिक त्रुटि-- समस्त लक्ष्यों को त्याग इसी भावनामयी जीवनको यों एवं बाधात्रोंसे लड़ना पड़ता है । यह मार्ग परिअपना लक्ष्य बनाना होगा। इसे ध्रुव-समान दृष्टिमें पहोंसे पूर्ण हैं । इसके लिये अदमनीय उत्साह, सत्यासमाना होगा। अपने को निश्चय-पूर्वक विश्वास कराना ग्रह और साहसकी जरूरत है । यह मार्ग कठिन ही नहीं होगा । "सोऽहं, सोऽहं", मैं वही हूँ, मैं वही हूँ। लम्बा भी बहुत है । इसके लिये दीर्घ पुरुषार्थ और श्रेणी .. समस्त विद्वानोंको छोड़ ज्ञानको इसी अमृतमयी बद्ध अभ्यासकी जरूरत है । इसे अभ्यस्त करने के लिये जीवनकी ओर ध्यान देना होगा । इसे स्पष्ट और पुष्ट इस मार्ग पर निरन्तर चलते रहना होगा। सोते-जागते, करना होगा। अन्दर ही अन्दर देखना और जानना चलते-फिरते, खाते-पीते, उठते-बैठते, हर समय इस होगा । 'सोऽहं सोऽहं ।' पर चलते रहना होगा । विचार है तो 'सोऽहं', पालाप समस्त रूढ़ीक भावों और बंधनोंसे हटा ममत्वको इसी है तो 'सोऽहं', अाचार है तो 'सोऽहं । इस मार्गको लक्ष्य में श्रासक्त करना होगा। इसीके पीछे २ चलना जीवन तन्तुअोंमें रमा देना होगा। यहां तक रमाना होगा, इसीके समरसमें डूबना होगा। हर समय अनुभव होगा कि यह मार्ग जीवनमें उतर पाये, जीवन में समा करना होगा । 'सोऽहं सोऽहं ।' जाये । साक्षात् जीवन बन जाये । यहां तक कि 'मैं' यह मार्ग आत्म-श्रद्धा, आत्म-विद्या, आत्मचर्याका और 'वह' का भेद भी विलय हो जाये । केवल वह ही मार्ग है । यह मार्ग सत्यपारमिता, प्रज्ञापारमिता,शील- वह रह जाता है । पारमिताका मार्ग है । यह मार्ग आत्म निश्चित, यह मार्ग किसी बाह्य विधि विधान, क्रिया काण्ड, श्रात्मबोध, अात्मस्थितिका मार्ग है । यह मार्ग सम्यक- परिग्रह अाडम्बर में नहीं रहता; यह किसी भाषा, आलाप ग्रन्थमें नहीं रहता, यह किसी सामायिक प्रथा, संस्थाॐ प्रश्न उप०१-१०.५-३, मुण्ड उप०३-१-५,' व्यवस्था में नहीं रहता, यह किसी पूजा-प्रार्थना, स्तुति१-२-११,' कैवल्य उप० १-१. वन्दनामें नहीं रहता। यह मार्ग साध्यके समान ही + दीघ निकाय--दूसरा सुत्त, छटा सुत्त, १०वाँ सुत्त, अलौकिक और गढ है, साध्यके साथ ही आत्माकी १२वाँ सुत्त । + लाठी संहिता-अध्याय ३ * तत्वार्थाधिरामसूत्र १-१, रत्नकरण्ड श्रावकाचार ३,

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