Book Title: Anekant 1940 04
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 31
________________ मोक्ष-सुख इकी इच्छाये है जिन्हें कुछ स पृथ्वी मंडल पर कुछ ऐसी वस्तुयें और मन जानने पर - [ श्रीमद् रायचन्द्रजी ] । जब भी कहा नहीं जा सकता । फिर भी ये वस्तुयें कुछ संपूर्ण शाश्वत अथवा अनंत रहस्यपूर्ण नहीं है ऐसी वस्तुका वर्णन नहीं हो सकता तो फिर अनंत सुखमंय मोक्षकी तो उपमा कहाँसे मिल सकती है ? भगवान् से गौतमस्वामीने मोक्ष के अनंतसुख के विषय में प्रश्न किया तो भगवान्ने उत्तर में कहा - गौतम ! इस अनंत सुखको जानता हूँ परन्तु जिससे उसकी समता दी जा सके, ऐसी यहाँ कोई उपमा नहीं ।. जगत् में इस सुखके तुल्य कोई भी वस्तु अथवा सुख नहीं ऐसा कहकर उन्होंने निम्नरूपसे एक भीलका दृष्टान्त दिया था । किसी जंगल में एक भोलाभाला भील अपने बाल बच्चों सहित रहता था । शहर वगैरहकी समृद्धिकी ● उपाधिका उसे लेश भर भी भान न था । एक दिन कोई राजा श्वक्रीड़ाके लिये फिरता फिरता वहाँ ग्रा निकला । उसे बहुत प्यास लगी थी । राजाने इशारेसे भील से पानी माँगा । भीलने पानी दिया। शीतल जल पीकर राजा संतुष्ट हुआ । अपनेको भीलकी तरफ़ से मिले हुए अमूल्य जल-दानका बदला चुकानेके लिये भीलको समझाकर राजाने उसे साथ लिया । नगर में आनेके पश्चात् राजाने भीलको उसकी ज़िन्दगी में न देखी हुई वस्तुनों में रक्खा । सुन्दर महल, पासमें अनेक अनुचर, मनोहर छत्र पलंग, स्वादिष्ट भोजन, मंद मंद पवन और सुगन्धी विलेपन से उसे श्रानन्द श्रानन्द कर . दिया | वह विविध प्रकारके हीरा, मणिक, मौक्तिक, मणिरत्न और रंग विरंगी अमूल्य चीज़ें निरन्तर उस भील को देखने के लिये भेजा करता था, उसे बाग़-बगीचों में घूमने फिरनेके लिये भेजा करता था । इस तरह राजा उसे सुख दिया करता था। एक रातको जब सब सोये हुए थे, उस समय भीलको अपने बाल-बच्चोंकी याद आई, इसलिये वह वहाँसे कुछ लिये करे बिना एकाएक निकल पड़ा, और जाकर अपने कुटुम्बियोंसे मिला । उन सबने मिलकर पूछा कि तू कहाँ था ? भीलने कहा, बहुत सुखमें। वहाँ मैंने बहुत प्रशंसा करने लायक वस्तुएँ देखीं। कुटुम्बी - परन्तु वे कैसी थीं, यह तो हमें कह | भील - क्या कहूँ, यहाँ वैसी एक भी वस्तु नहीं । कुटुम्बी - यह कैसे हो सकता है ? ये शंख, सीप, कौड़े कैसे सुन्दर पड़े हैं ! क्या वहाँ कोई ऐसी देखने लायक वस्तु थी ? भील - नहीं भाई, ऐसी चीज तो यहाँ एक भी नहीं । उनके सौवें अथवा हज़ारखें भाग तककी भी मनोहर चीज़ यहाँ कोई नहीं । कुटुम्बी - तो तू चुपचाप बैठा रह । तुझे भ्रमणा हुई है। भला इससे अच्छा क्या होगा ? कर गौतम ! जैसे यह भी राज- वैभव के सुख भोगआया था, और उन्हें जानता भी था, फिर भी उपमाके योग्य वस्तु न मिलने से वह कुछ नहीं कह

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