Book Title: Anekant 1940 04
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 36
________________ ४१२ अनेकान्त [ चैत्र, वीर- निर्वाण सं० २४६६ जानने योग्य खास खास श्राचार्योंके जीवन चरित्रोंका भी इसमें समावेश है । एवं तीनों संप्रदायोंके समाचार पत्रों का पठन भी श्रावश्यक माना गया है, इससे परस्परकी स्थिति एवं भावनाओं का ज्ञान भी छात्रोंको हो सकेगा । आशा है कि विद्वान् महानुभाव इस दृष्टिकोण का विचार करते हुए, अपना संशोधन और अपनी बहु मूल्य सम्मति निम्न पते पर १५ मई तक भेजनेकी कृपा करेंगे, जिससे कि मई के अंतिम सप्ताह तक सम्मेलन कार्यालय में पाठ्यक्रमकी अन्तिम रूपरेखा भेजी जा सके । सूचित किया गया है कि पाठ्यक्रम में निर्धारित पुस्तकों की तीन तीन प्रतियाँ भी सम्मेलन-कार्यालय में भिजवायेगा | क्योंकि इन पुस्तकोंकी जाँच पड़ताल परीक्षा-समिति करेगी । बिना पुस्तकोंके देखे परीक्षा - समिति पाठ्यक्रम में स्थान नहीं दे सकेगी । श्रतः जिन प्रकाशकोंकी पुस्तकें पाठ्यक्रम में निर्धारित हों उन्हें सूचना पाकर उनकी तीन तीन प्रतियाँ शीघ्र भेजने की कृपा करनी चाहिये । पुस्तकें मध्यमा और दर्शन रत्न चतुर्थ प्रश्न पत्र की भेजना होंगी । 'पाठ्यक्रम सरल और महत्वपूर्ण हो,' यही एक दृष्टिकोण रक्खा गया है। क्योंकि मध्यमामें जैनदर्शन के साथ अन्य दो विषय और भी रहेंगे । श्रतः सरल होने पर ही जैन छात्र एवं श्रन्य जैनेतर छात्र इस ओर आकर्षित हो सकेंगे । अन्यथा जटिल होनेकी दशामें यह प्रयास और ध्येय व्यर्थ ही सिद्ध होगा । यह स्पष्ट ही है कि यदि जैन दर्शनका पाठ्यक्रम जटिल होगा तो छात्र इसे न चुन कर किसी अन्य वैकल्पिक विषय का चुनाव कर लेंगे । इस लिये सरलता किन्तु महत्ताका ख्याल रख करके ही यह पाठ्यक्रम बनाया गया है । इसी प्रकार इसमें श्वेताम्बर दिगम्बर दोनों पक्ष के ग्रंथोंको स्थान दिया गया है, जिससे कि यह एक पक्षीय न होकर सार्वदेशिक जैन दर्शनका प्रति निधित्व करता है । इससे परस्पर में सांप्रदायिक भावarah स्थान पर एक ही जैनत्वकी भावनाओंका ( बैरिस्टर चम्पतरायजी कृत ) हिन्दी अनुवाद | सहायक ग्रन्थ - १ श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र छात्रों में प्रसार होगा तथा कटुताके स्थान पर मातृत्व भावना और विशालताका फैलाव होगा । इस पाठ्यक्रम में जैन दर्शन सम्मत तत्ववाद, द्रव्यवाद, गुणस्थानवाद, कर्मवाद, अहिंसावाद, रत्नत्रयवाद, प्रमाण-नयवाद, स्याद्वाद आदि आदि मूलभूत सिद्धान्तों का आवश्यक और महत्वपूर्ण विवेचन श्रागया है । पता - रतनलाल संघवी, पो० छोटी सादड़ी (मेवाड़) वाया नीमच | पाठ्यक्रम मध्यमा परीक्षा प्रथम प्रश्नपत्र पाठ्य ग्रंथ - १ कर्म-ग्रंथ १ला भाग भूमिका सहित (गाथाऐं कंठस्थ नहीं ) पं० सुखलालजी कृत श्रागरा वाला । २ जैन सिद्धान्त प्रवेशिका ( प्रथम अध्याय और प्रश्न ३७८ से ३६६ तक छोड़कर) पं० गोपालदासजी बरैया कृत । २ पुरुषार्थ सिद्धयुपाय ( श्री अमृतचंद्र स्वामी) हिन्दी अनुवाद - श्री नाथूरामजी प्रेमीवाला । ३ स्याद्वाद और सप्तभंगीका साधारण आवश्यक ज्ञान । अंकों का क्रम - पाठ्य ग्रंथ ७० अंक और सहायक ग्रंथ ३० अंक |

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