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अनेकान्त
पोछेको मानने पर उसे कुछ बादका ही क्यों माना जाय सो भी समझ में नहीं आता । चारित्र - पाहुड़से उद्धरण तो तबसे लगाकर अबतक कभी भी किया जा सकता हैं ।
यदि कहा जाय कि वीरसेन व पूज्यपादने अपनी टीकाओं में वे गाथाएँ स्पष्टतः उद्धृत की हैं, किन्तु पंचसंग्रह में वे बिना ऐसे किसी संकेतके आई हैं इस कारण वे पंचसंग्रहकारकी मूल रचना ही समझी जानी चाहियें तो यह भी युक्ति संगत नहीं होगा । गोम्मटसार में भी वे सैकड़ों गाथाएँ बिना किसी उद्धरणकी सूचना के आई हैं जो धवला में 'उक्तं च' रूपसे पाई जाती हैं और यदि हमें गोम्मटसार कर्ताके समयका ज्ञान नहीं होता तो संभवतः उक्त तर्क सरणिसे उसके विषयमें भी यही कहा जा सकता था कि उसी परसे घवलाकार ने उन्हें उद्धृत किया है। अतः गोम्मट पहिलेकी रचना है । किन्तु हम प्रामाणिकता से जानते हैं कि गोम्मटसार में ही वे धवलासे संग्रह की गई हैं। इसी प्रकार यह असम्भव नहीं
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[ चैत्र, वीर- निर्वाण सं० २४६६
है कि पंचसंग्रह कारने ही उन्हें गुणधर आचार्य. कुन्दकुन्द, पूज्यपाद वीरसेन आदि आचार्योंकी रचना पर से ही संग्रह किया हो । यह भी हो सकता
पूज्यपाद वीरसेन तथा पंचसंग्रहकारने उन्हें किसी अन्य ही ग्रंथ से उद्धृत किया हो । ऐसी अवस्था में अभी केवल समान गाथाओं के पाये जाने से पंचसंग्रहको वीरसेन व पूज्यपाद से निश्चयतः पूर्ववर्ती कदापि नहीं कह सकते । संग्रहकार के समय-निर्णय के लिये कोई अन्य ही प्रबल व स्वतंत्र प्रमाणों की आवश्यकता है। विशेषकर जब कि ग्रंथकार स्वयं ही अपनी रचनाको 'संग्रह' कह रहे हैं तब सम्भव तो यही जान पड़ता है कि वह बहुतायत मे अन्य ग्रंथों परसे संग्रह की गई है । ये 'सार' या 'संग्रह' ग्रंथ प्रायः इसी प्रकार तैयार होते हैं। उनमें कर्ताकी निजी पूंजी बहुत कम हुआ करती है । आश्चर्य नहीं जो उक्त पंचसंग्रह धवला से पीछेकी रचना हो । उसका सिद्धान्त-ग्रंथसे कुछ सम्बन्ध होने के कारण गोम्मटसारके समकालीन होनेकी सम्भावना की जा सकती है ।
प्रश्न
[ श्री 'रत्नेश' विशारद ]
शून्य विश्व के अन्तस्तल को, ज्योति-युक्त करता है कौन ? - जीवन - नर्जर-सा प्राणदान देता है कौन
होवे,
?
अन्धकारमय हृदय-पटल में, वह अनन्त बल लाता कौन ? इस अस्थिर मय क्रूर देह की, चंचलता को हरता कौन ?