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अनेकान्त
[चैत्र, वीर-निर्वाण सं०२४६६
पर किसी समय युगपत् हो सकते हैं । इससे दो तीन नामका सूत्र एक ही अर्थके वाचक हैं । ज्ञानोंका भी एक साथ होना ध्वनित होता है । दो एक
सद्विविधः ॥ ३ ॥ साथ होंगे तो मति, श्रुत होंगे, और तीन होंगे तो मति, . 'वह (उपयोग) दो प्रकारका होता है।' श्रुत, अवधि अथवा मति, श्रुत और मनः पर्यय होंगे। यहां दोकी संख्याका निर्देश करनेसे उपयोगके एक ज्ञान केवलज्ञान ही होता है-उसके साथमें आगमकथित दो मूल भेदोंका संग्रह किया गया हैदूसरे ज्ञान नहीं रहते। यह सत्र उमास्वातिके एकादी- उत्तर भेदोंका वैसा कोई निर्देश नहीं किया जैसा कि नि भाज्यानि युगपदेकस्मिनाचतुर्म्यः' इस सूत्रके उमास्वातिके "सद्विविधोऽष्टचतुर्भेदः' इस सूत्र नं०६ समकक्ष है और इसी-जैसे श्राशयको लिये हुए है। में पाया जाता है । परन्तु इसकी शब्द-रचना कुछ सन्दिग्धसी जान पड़ती द्वींद्रियादयस्त्रसाः॥४॥ है । संभव है 'एकत्रचत्वारि' के स्थान पर 'एकत्रैक द्वीन्द्रियादिक जीव त्रस हैं।' द्वित्रिचत्वारि' ऐसा पाठ हो।
यहां 'श्रादि' शब्दसे त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रय तथा • इति श्री वृहत्प्रभाचन्द्रविरचिते तत्त्वार्थसूत्रे संज्ञी-असंज्ञीके भेदरूप पंचेन्द्रिय जीवोंके ग्रहणका प्रथमोध्यायः ॥१॥
निर्देश है । यह सूत्र और उमास्वातिका १४ वाँ सूत्र 'इस प्रकार श्री वृहत् प्रभाचन्द्र-विरचित तत्त्वार्थ- अक्षरशः एक ही हैं । सूत्रमें पहला अध्याय समाप्त हुआ।
शेषाः स्थावराः ॥५॥ दूसरा अध्याय
'शेष (एकेन्द्रिय) जीव स्थावर हैं।' जीवस्य पंचभावाः ॥१॥
उमास्वातिके दिगम्बरीय सूत्रपाठके 'पृथिव्यपते'जीवके पंचभाव होते हैं।'
जोवायुवनस्पतयः स्थावराः' सूत्र नं० १३ का जो आशय यहाँ पाँचकी संख्याका निर्देश करनेसे जीवके
है वही इस सूत्रका है । और इसलिए स्थावर जीव पृथिवी
श्रादिके भेदसे पांच प्रकारके हैं। श्रागम-कथित औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक, ऐसे पांच भावोंका संग्रह
द्रव्यभावभेदादिंद्रियं द्विप्रकारं ॥ ६॥
'द्रव्य और भावके भेदसे इन्द्रिय दो प्रकार है।' किया गया है । उमास्वातिके दूसरे अध्यायका "श्रौपशमिकक्षायिकौ" अादि प्रथम.सूत्र भी जीवके भावोंका
इस सूत्रमें यद्यपि उमास्वातिके "द्विविधानि' १६, द्योतक है। उसमें पांचोंके नाम दिये हैं, जिससे वह __* द्वि । बड़ा सूत्र हो गया है । श्राशय दोनोंका प्रायः एक ही श्वेताम्बरीय सूत्रपाठमें १४वें सूत्रका रूप 'तेजोवायू
द्वीन्द्रियादयश्च ब्रसाः' ऐसा दिया है, क्योंकि श्वेत्ता। उपयोगस्तल्लक्षणं ॥ १॥ म्बरीय भाई अग्नि और वायुकायके जीवोंको भी त्रस 'जीवका लक्षण उपयोग है ।'
जीव मानते हैं। यह सूत्र और उमास्वातिका 'उपयोगो लक्षणं' tषा