Book Title: Anekant 1940 04
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 19
________________ वर्ष ३, किरण ६] प्रभाचन्द्रका तस्वार्थसूत्र ३६५ कारीके कारण न मालूम कितने ग्रंथरल पसारियोंकी क्रमशः १५, १२, १८, ६, ११, १४, ११,८,७, ५ दुकानोंपर पुड़ियात्रोंमें बँध बँधकर नष्ट हो चुके हैं !! हैं, और इस तरह कुल सूत्र १०७ हैं । इस सूत्रमें दश कितने ही ग्रंथोंका उल्लेख तो मिलता है परन्तु वे ग्रंथ अध्याय होने के कारण इसे 'दशसूत्र' नाम भी दिया आज उपलब्ध नहीं हो रहे हैं । इस विषय में दिगम्बर गया है-उमास्वातिके तत्त्वार्थ सूत्रको भी 'दशसूत्र' समाज सबसे अधिक अपराधी है, उसकी ग़ानत अब- कहा जाता है, और यह नाम ग्रंथकी प्रथम पंक्ति में ही, तक भी दूर नहीं हुई और वह अाज भी अपने ग्रंथोकी उसका लिखना प्रारम्भ करते हुए, 'अर्थ' और 'लिख्यते' खोज और उन के उद्धार के लिये कोई व्यवस्थित प्रयत्न पदों के मध्य में दिया है ! ग्रंथके अन्त में-१०वीं संधि नहीं कर रहा है । और तो क्या, दिगम्बर ग्रन्थोंकी कोई (पुष्पिका ) के अनन्तर-'इति' और 'समाप्त' पदोंके अच्छी व्यवस्थित सूची तक भी वह अबतक तैय्यार मध्य में इसे 'जिनकल्पी सूत्र' भी लिखा है । इस प्रकार करानेमें समर्थ नहीं हो सका; जबकि श्वेताम्बर समाज ग्रंथप्रति के आदि, मध्यम और अन्तमें इस सूत्रग्रंथके अपने ग्रंथोंकी ऐसी अनेक विशालकाय-सूचियाँ प्रकट क्रमशः दशसूत्र, तत्त्वार्थसूत्र और जिनकल्पी सूत्र, ऐसे कर चुका है । जिनवाणी माता की भक्तिका गीत गाने- तीन नाम दिये हैं । पिछला नाम अपनी खास विशेषता वालों और उसे नित्य ही अर्घ चढ़ानेवालों के लिये ये रखता है और उसने बा० कौशलप्रसादजीको इस सब बातें निःसन्देह बड़ी ही लजाका विषय हैं। उन्हें ग्रन्थको कोटासे लाने के लिये और भी अधिक प्रेरित इनपर ध्यान देकर शीघ्र ही अपने कर्तब्यका पालन करना किया है। हाँ, मात्र १०वीं संधिमें 'तत्त्वार्थसूत्र' के चाहिये-ऐसा कोई व्यवस्थित प्रयत्न करना चाहिये स्थानपर 'तत्त्वार्थसारसूत्र' ऐसा नामोल्लेख भी है, जिसका जससे शीघ्र ही लुप्तप्राय जैन ग्रंथोंकी खोजका काम यह अाशय होता है कि यह ग्रंथ तत्त्वार्थ विषयका. सारज़ोर के साथ चलाया जासके, खोजे हुए ग्रन्थोंका उद्धार भूत ग्रंथ हैं अथवा इस सूत्रमें तत्त्वार्थशास्त्रका सार हो सके और संपूर्ण जैन ग्रंथोंकी एक मुकम्मल तथा खोंचा गया है । पिछले अाशयसे यह भी ध्वनित हो सुव्यवस्थित सूची तैयार हो सके । अस्तु । सकता है कि इस ग्रथमें सम्भवतः उमा वाति के तत्त्वार्थ अब मैं मूल ग्रन्थको अनवाद के साथ अनेकान्तके सूत्रका ही सार खींचा गया हो। ग्रन्थ-प्रकृति और पाठकों के सामने रखकर उन्हें उमका पूरा परिचय करा उसके अर्थ सादृश्यको देखते हुए, यद्यपि, यह बात देना चाहता हूँ। परन्तु ऐसा करने से पहले इतना और कुछ असंगत मालम नहीं होती बल्कि अधिकतर झुकाव भी बतला देना चाहता हूँ कि यह ग्रंथ श्राकारमें छोटा उसके माननेकी अोर होता है; फिर भी ह संधियों में होनेपर भी उमास्वातिके तत्त्वार्थ सूत्रकी तरह दश 'सार' शब्दका प्रयोग न होनेसे १०वीं संधिमें उसके अध्यायोंमें विभक्त है, मूल विषय भी इसका उसीके प्रयोगको प्रक्षिप्त भी कहा जा सकता है। कुछ भी हो, समान मोक्षमार्गका प्रतिपादन है और उसका क्रम भी अभी ये सब बातें विशेष अनुसंधानसे सम्बन्ध रखती हैं, प्रायः एक ही जैसा है-कहीं कहीं पर थोड़ासा कुछ और इसके लिये ग्रंथकी दूसरी प्रतियोंको भी खोजनेकी विशेष ज़रूर पाया जाता है, जिसे आगे यथावसर जरूरत है । साथ ही, यह भी मालूम होना ज़रूरी है कि . सूचित कर दिया जायगा । इन अध्यायोंमें सूत्रोंकी संख्या इस सूत्रग्रन्थपर कोई टीका-टिप्पणी भी. लिखी गई है

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