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प्रकाशकीय
परम श्रद्धेय आचार्य श्री आनन्द ऋषिजी महाराज श्वे० स्था० जैन श्रमण संघ के द्वितीय आचार्य हैं, यह हम सबके लिए गौरव की बात है, हाँ, यह और भी अधिक उत्कर्ष का विषय है कि वे भारतीय विद्या (अध्यात्म) के गहन अभ्यासी तथा मर्मस्पर्शी विद्वान हैं। वे न्याय, दर्शन, तत्वज्ञान, व्याकरण तथा प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश आदि अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं और साथ ही समन्वयशील प्रज्ञा और व्युत्पन्नप्रतिभा के धनी हैं। उनकी वाणी में अद्भुत ओज और माधुर्य है । शास्त्रों के गहन तम अध्ययन अनुशीलन से जन्य अनुभूति जब उनकी वाणी से अभिव्यक्त होती है तो श्रोता सुनतेसुनते भाव विभोर हो उठते हैं। उनके वचन, जीवन-निर्माण के मूल्यवान सूत्र हैं ।
__ आचार्य प्रवर के प्रवचनों के संकलन की बलवती प्रेरणा विद्यारसिक श्री कुन्दन ऋषिजी महाराज ने हमें प्रदान की। बहुत वर्ष पूर्व जब आचार्यश्री का उत्तर भारत, देहली, पंजाब आदि प्रदेशों में विचरण हुआ, तब वहाँ की जनता ने भी आचार्य श्री के प्रवचन साहित्य की मांग की थी। जन भावना को विशेष ध्यान में रखकर श्री कुन्दन ऋषिजी महाराज के मार्गदर्शन में हमने आचार्यप्रवर के प्रवचनों के संकलन-संपादन-प्रकाशन की योजना बनाई और कार्य भी प्रारम्भ किया। धीरे-धीरे अब तक 'आनन्द प्रवचन' नाम से सात भाग प्रकाश में आ चुके हैं।
यद्यपि आचार्य प्रवर के सभी प्रवचन महत्वपूर्ण तथा प्रेरणाप्रद होते हैं, फिर भी सबका संकलन-संपादन नहीं किया जा सका। कुछ तो सम्पादकों की सुविधा व कुछ स्थानीय व्यवस्था के कारण आचार्य प्रवर के लगभग ३००-४०० प्रवचनों का संकलनसंपादन ही अब तक हो सका है। जिनका सात भागों में प्रकाशन किया चुका है। इन सात भागों का संपादन प्रसिद्ध विदुषी धर्मशीला बहन कमला जैन 'जीजी' ने किया है। पाठकों ने सर्वत्र ही इन प्रवचनों को बहुत रुचि व भावनापूर्वक पढ़ा और अगले भागों की मांग की।
प्रस्तुत आठवें भाग में प्रसिद्ध ग्रन्थ 'गौतम कुलक' पर दिये गये प्रवचन हैं। 'गौतम कुलक' जैन साहित्य का बहुत ही विचार-चिन्तन पूर्ण सामग्री से भरा सुन्दर ग्रन्थ है। इसका प्रत्येक चरण एक जीवन सूत्र है, अनुभूति और संभूति का भंडार है । ग्रन्थ परिमाण में बहुत ही छोटा है, सिर्फ इक्कीस गाथाओं का, किन्तु प्रत्येक गाथा के प्रत्येक चरण में गहनतम विचार सामग्री भरी हुई है। अगर एक-एक चरण पर चिन्तन-मनन किया जाये तो भी विशाल विचार साहित्य तैयार हो सकता है।
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