Book Title: Anand Kavya Mahodadhi Part 6
Author(s): Jivanchand S Zaveri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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પ્રસ્તાવ ૧૬ મા
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( श्लोक - उपजातिछन्द ) सन्ध्यादिवारात्रिघटी समेतं जनायुरम्भः परिशोषणाय; आदित्यचन्द्रौ वृषभौ बलिष्ठौ, कालोऽरघट्टं परिवर्तयेत. २४२ यौवनं जलतरङ्गचञ्चलं, जीवितं जलदजालसन्निभम् ; सङ्गमाः कपटनाटकोपमाः, हन्त दुस्तरतरो भवोदधिः २४३ निगृह्य केशेषु निपात्य दन्तान्, बाधिर्यमाधाय विधाय चान्ध्यम् ; कामान् बलादेव जरा हिनस्ति, स्वेनैव नो मुञ्चति पूर्वमेव. २४४ तारुण्यरत्नं पतितं कथं मे ! हतोऽस्मि हा ! दैव ! कथं करोमि? इतीव नम्रः किल मन्दमन्दं, पश्यन् प्रयाति स्थविरो वराक: २४५ करौ शिरश्चापि अहो धुमानं, मृत्योर्भयात् कम्पितसर्वगात्रम् ; निषेधचेष्टां विदुरोपि वृद्धं गृह्णाति हा हन्त नव कृतान्त. २४६
[ महाभारत - वनपर्वे.
( थोपा४. १ )
ઇતિ અનિત્ય-ભાવે ભાવના, નલમહારાય તદા શુભમના; મનિ ચિતે હેવિ ઇંડુ રાજ, નથી વિ· સંસારિ કાજ ! ૨૪૭ પૂર્વજપ્રતિ લગાડી લાજ, ન ચડયુ મૂરખ સંયમપાજ;
ભૈમી પૂણ્યવતી મુઝપ્રતિ, તપસંયમ જમ્યિા તે ધનિતિ. ૨૪૮ ઇતિ જિનક્રિખ્યાનું પરિણામ, નલરાજા મનિ આવ્યુ જામ;
( ४२७ )
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१५० " युयै. ૨ સંસાર અને સંસારની સર્વે માયા અસાર
અને નાશવંત છે, એવા ભાવવાલી ભાવના ભાવવા લાગ્યા.
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3 મયણુ રેહ સરખી સતી, થેાડી એણે સંસાર;
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सगणु सायुं सेवी, तार्यो नि भर्तार. उ
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[श्रीभेधरान. मा. आ. भ. भ० उ भुं पाने ३७०.
४ शिष्या, शिक्षा वधारे ठी छे (?) ५ नित्य, ०४.
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