Book Title: Amarbharti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 5
________________ ( ४ ) कर, अजर, मृत्यु को जीतकर अमर, भय को जीतकर अभय हो जाता है । मनुष्य, मनुष्य न रहकर, वह कलापी तथा शिलापी बन जाता है । उपाध्याय श्रीजी के वरदहस्त की छाया में रहकर, शिष्य गुरु बन जाता है, गुरु भगवान् बन जाता है । अपने शिष्य को गुरु कलापी एवं शिलापी बना देता है । गुरु की कला को ग्रहण करने वाला कलापी होता है, गुरु की संकल्प - शिला को ग्रहण करने वाला शिलापी बन जाता है । मोतीकटरा जैन भवन, आगरा Jain Education International मनुज दुग्ध से दनुज रुधिर से, अमर सुधा से जीते हैं । किन्तु हलाहल इस जग का तो, शिव शंकर ही पीते हैं ।। For Private & Personal Use Only विजय मुनि ५-१२-१६६१ www.jainelibrary.org

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