Book Title: Ajitnath Vandanavali
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनेश्वरसूरिप्रणीतं (यमकाङ्कितं) सुरुचिरं रुचिरं रुचिरञ्जितैर्वर सुरैरसरैश्च यदर्चितम । आजतदेव ! तदेवतव क्रमद्वयमधीशमधीश मनस्तवै ।। रत्नशेबारिप्रणीतं असम समरलीलालालसाभावरूपच्छलापर बलहेलामङ्गरङ्गगमीव । करिवर परिधारीवो विमोहाबहारी भवजयिविजयाभू रङ्गभूमि रमासु ॥ कुलप्रभावः कृष्यत्पुण्यवपुर्धद्विमलदक्तृष्णातिरेकोच्छल न्मू विलुत चेतनः कुगतिभूपीठेलुठन्नाकुल: दुःस्थोऽहं भवरोगयोगविवशोविश्वप्रभो ! त्वत्पुरः संप्रापोऽजित ! विश्ववैद्यसहसा यत्कृत्य निष्टोभव ।। धर्मशेखरगणिः श्रीकान्तहाममाहासमाजततमोरङ्गदेनासमानः (२) रत्याहीनोविनोदो नयपर विजयाजातनो नाशयामा ।। (२) मुनि शेखरसूरः वरमुदारगुणालिराजितं कनककान्तिधरं गजवाञ्छनम् । भववनावलिभजनवारणं सुविजयासुततीर्थकरं स्तुवे ।। निर्नामकम गोक्षीरहीरहरहारविहारहारि कीर्तिप्रमोदित जनोदित मोहपाशः । कुर्वन् कुकर्म विजयं विजयातनूजं स्तन्यान्महोदयमहोदयसंपदं वः ॥ For Private And Personal Use Only

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