Book Title: Ajitnath Vandanavali
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पू. आचार्य धर्मघोषसूरीश्वरप्रणीत यमकबद्ध (मालिनीवृत्तम) प्रकटितवृषरूप! त्यक्तनिश्शेषरूपप्रभृतिविषयरूप! ज्ञातविश्वस्वरूप । जयचिरम-ऽसरूप! पापपकाडम्बुरूप : त्वमजित ! निजरूप प्रास्तसज्जात्यरूप! कविचकवर्ति श्रीपालप्रणीत यमकबद्ध (अनुष्टुपवृत्तम् ) समुलकित संसार कान्तार ! तरसाऽजित !। मां पुनोहि जगन्नाथ : कान्तार तरसाजित! ।। पू. आ. श्रीधर्मघोषसूरीश्वर प्रणीत भवानीश! सदा यस्याजित ! निष्कोप! नाति । हितो न हितं स्वामि-जितनिष्कोपनाथति ।। ___ मुनि हेमविजयजी ___(अनुष्टुप) वन्देऽहमजितं देवं लीलयाजितमन्मथम् । कर्मवल्लीविनाशाय कुठार सदृशं विभुम् ।। (अनुष्टुप) तारङ्गे गगनस्पर्द्धि कुमारनृपकल्पितम् । अजिताऽकृतं चैत्यं, अजित विदधातुमाम् ।। जिनपतिसूरिप्रणीतं (यमकमये) उपाध्वमजितं भक्त्याकं दधानमनेकपम् । प्रणतोदबोधितज्ञानकन्दधानमनेकपम् ॥ For Private And Personal Use Only

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