Book Title: Ajitnath Vandanavali
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(आख्यानकीछंद) समुद्भवो येन समूलदाह, देहे सदाभाविजयाङ्गजस्य शिवं दिशन्तामजितस्य तस्य, देहे सदाभा विजयाङ्गजस्य
(मालिनीवृत्तम्) निखिलगुणनिधान मुक्तिकान्ताऽवधानं,
वरशमथ विधानं सिन्धुराक प्रधानं । परिहृत परिधान ज्ञान लक्ष्मीदर्धान,
नमत सदभिधानं पापहत्संनिधानम् ॥
श्रीशान्तिचंद्रमहाराजप्रणीत यमकबद्ध
(दुतविलंबितवत्तमू) गजगतोऽङ्कगज ! प्रमपुङ्गज! व्यपकलाकदलीकवले गज ?। अजितोभाजित भास्वर भर्मभाजितमतागपवैव भवादित ॥
श्रीन्यायसागरजीप्रणीत यमकबद्ध
(द्रुतविलंबितवृत्तम्) अजित ? भाजितभास्कर ? साधुभिर्विजयतां जयतां दधदाऽऽहतम् । अविरतं विरतं भृशमंहसो भविहितं विहितं तबशाषनम् ।।
मु. हेमविजयजीप्रणीत यमकबद्ध
(द्रुतविलंबितवृत्तम्) तमजितं जितशत्रुधराधिपाऽन्वयकु शेशय भानुमभिष्टुमः । स्मरधुरं हृदि न प्रभुरस्मरन्नरमणीरमणी रमणीयताम् ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 143