Book Title: Ajitnath Vandanavali
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ऋषभप्रभो निर्वाणानन्तरं श्रीभरतनरदेवेन अष्टापदाद्रौ विहितः जयाऽजित ! जगन्नाथ ! कषायविजयाजित ! विजयाकुक्षिमाणिक्य ! जितशत्रु नृपात्मज ! श्री देवनन्दिप्रणीत येन स्मरासनिकरैरपराजितेन सिद्धिर्वधूधूवमबोघि पराजितेन । संवृद्धधर्म सुधिया कविराजमानः (१) क्षिप्रं करोतु यशसा स विराजमानः ।। श्री जिनप्रभसूरि विरचितः द्विरदलाञ्छित वाञ्छितदायक क्रमलुठत्रिदशासुरनायक । स्तुतिपरः पुरुषो भवति क्षितावजित राजितरा जितरागते सुशीलसूरि कर्ता (दुतविलम्बित वृत्तम्) जिनपति जितशत्रु सुनन्दनं सुविजयाङ्गजसद्गजलाञ्छनम् । सुरनतं भविपद्म प्रभाकरं निखिलविश्वबिदं ह्यजितस्तुम : यजन्मैकविधौ चतुर्विधसुरैर्मामुद्यते मेरुव च्छर्दिव्यविभूषणैर्जगतियो बोभूष्यते स्वाङ्गवत् जेजीयादजितः समेन्द्रमाहतः सर्वान् रिपून सर्वतः श्रोहस्त्यङ्कजिनःप्रशीर्णवृजिनः सिद्धयैप्रपोपोष्टुः नः ।। For Private And Personal Use Only

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