Book Title: Ajitnath Vandanavali
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धीराजि ? तत्र बितनोषि शिवं गुणाम्बुधी रोजितस्तव मुदा तनुते नुतिं यः । धीराऽजित ! स्मरजये? शिवमाप्नुकामाघीरा जितश्रमतया स्तुवते ततस्त्वाम् ।। पन्यास चारित्ररत्नगणिप्रणीत यमकबद्ध (अनुष्टुप् छन्द) भगवन् ? भवतो भव्या, जितशत्रुभवाऽदरम् । प्रपद्यन्ते पदंसद्यो, जितशत्रुभवाऽदरम् ॥ पन्यास चारित्रविजयजीगणिप्रणीत यमकबद्ध तं नमस्कुर्महे भक्त-रजितं विनताऽमरम् । यः पाति जनतां दोष-रजितं विनताऽमरम् ।। (शार्दूलविक्रीडितम्) आचार्यश्री जिनसुन्दरसूरीश्वरप्रणीत यमकबद्ध तन्वा सत्त्वसतत्त्व ! सत्त्वहितकृत्तत्वानि शैवं सुखं सद्योनिर्जितशत्रुजात! सविता पद्मभिरामोदय । रोहन्मोहतिमिस्रसंदतिहृतौविश्राणिताभिर्विशोऽ सद्योनिर्जितशत्रुजात ! सवितोऽऽपद्माऽभिरामोदय ॥ सोमप्रभसूरीश्वरप्रणीत यमकबद्ध (उपजातिवृत्तम् ) मुषाण दुःखं दलितान्तरारेऽमराग धीराऽजित ! मेऽघजातम् । स्मराग्नि शान्तो तव यस्य वाक्यमरागऽ! धीराजितऽ ! मेघजातम् ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 143