Book Title: Aghatkumar Charitram Pramade Nirdravyaviprakatha Punyaprabhave Siddhadutta Katha
Author(s): Manchand Velchand
Publisher: Manchand Velchand

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Page 11
________________ कुर्वन् गतागते नित्यं त्वमावससि मद्वने / नोपद्रवयसे किञ्चित् तेन तेऽहं प्रसेदिवान् // 96 // तद् याचखेच्छया रत्ना-दिकमुक्तः, स ऊचिवान् / सर्वमस्ति सुतं मुक्त्वा कुलश्रीवल्लिमण्डपम् // 97 // विना पुत्रं नृजन्मापि विफलं त्ववकेशिवत् / यक्षोऽवदन्मा विषीद त्वं कामदोऽस्मि सुरद्रुवत् // 98 // तद् गृहीथा मदङ्कस्थं मत्पुत्रमघटं अंगे / यक्षराजो निधायैवमदृश्यत्वमुपेयिवान् // 99 // खमः किमेष किं माया किंवा चित्तभ्रमो मम / साश्चर्यश्चिन्तयन्नित्थं सोऽगाद्यक्षौकसि प्रगे // 10 // तत्र प्रविशतोऽप्यस्य कणचरणघुर्घरः। अघटस्ताततातेति ब्रुवन्नभ्यागमत् क्षणात् // 101 // वदन्नोहि वत्सेति स तमादाय सखेजे / यक्षपादानथानम्य निजावासमुपेयिवान् // 102 // तं वृत्तान्तं समाख्याय पत्यास्तनयमार्पयत् / अघटेनाघटेनेव सूनुना सापि पिप्रिये // 103 // कलहायिष्ट मा कोऽपि मत्पुत्रोऽयमिति ब्रुवन् / ततो देवधरश्चक्रे तदैव द्राक् प्रयाणकम् // 104 // अथाऽधीतकलाकेलिः कलाकेलिमनोरमः। सौन्दर्यसारभुवनमघटः प्राप यौवनम् // 105 // अथा-ऽङ्ग-बङ्ग-कालिङ्ग-तिलङ्ग-मगधादिषु / क्रियासमभिहारेणाऽभ्राम्यदू देवधरोऽन्यदा // 106 // निःशेषनगरीवर्गमौलिमाणिक्यदामनि।आययौ श्रीविशालायां विशालायां पुनः पुरि // 107 // युग्मम् / चचाल च तदैवासौ प्रणन्तुमवनीपतिम् / राजाऽवलोकनचिकीरघटोऽपि सहाऽचलत् // 108 // 1 प्रातःकाले / 2 आलिलिङ्ग /

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