Book Title: Aghatkumar Charitram Pramade Nirdravyaviprakatha Punyaprabhave Siddhadutta Katha
Author(s): Manchand Velchand
Publisher: Manchand Velchand

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Page 24
________________ अथ खपुत्र-सामन्त-सेनानीभित्र्तो नृपः / सन्नद्धभटसेनाङ्गो राजपट्यां विनिर्ययौ // 263 // अघटकु. || गत्वा गोत्रेश्वरीचैत्यं नत्वा स्तुत्वा प्रपूज्य ताम् / कुमारानादिशत्तत्र क्ष्मापतिर्बलिकर्मणे // 264 // // 11 // ततस्तैः स्पर्द्धया सर्वैस्तदा यमसुतैरिव / निस्त्रिंशैरानिस्त्रिंशैर्बभाषे गजभञ्जनः // 265 // येनाऽभौजि त्वया सिंहेनेव प्राक्करिणां घटाः / प्रत्यक्षीकुरु सर्वेषां तदिदानीं भुजाबल ! // 266 // असिं निशितमादाय दृढं प्रहर सैरिभे / कूष्माण्डमिव कस्यैष प्रहाराद् भवति द्विधा // 267 // सोऽवदन्न तु चाऽन्याये युष्माकमिव मे मतिः / अयुध्यमानान्नस्त्रिंश्याद्धनिष्यामि यदङ्गिनः // 268 // 3 किञ्च, प्रवर्तितं मूढैः किमेतत्प्राणिघातनम् / बलिर्भवति किं नाऽत्र क्षिप्राऽपूपादिकैरपि 1 // 269 // तेऽप्यूचुर्बाह्मणस्येव धेन्वर्थे लुनतस्तृणान् / भविष्यति न नोऽप्येनो देवार्थे महिषान् नताम् // 270 // किंवाऽस्मदर्थमेवैतान् मेषादीन् विदधे विधिः।तृणादीनीव तिर्यग्भ्यः सस्यानीव वणिक्कृते // 271 // इत्यन्योन्यमसम्बद्धं जल्पद्भिस्तैर्दुरात्मभिः / विलक्षीक्रियते स्मैकः कुकुरैरिव शूकरः // 272 // अथोपरुद्धः पित्राद्यैरसिमुद्यम्य तद्वेधे / न्यवर्तत पुनर्वेगात् स दयोल्लासिमानसः // 273 // || पौनःपुन्येन पित्राद्यैः कार्यमाणोऽपि हिंस्रताम्। त्रिरुद्यम्याऽप्यसिं भूयः प्राहरन्नैकशोऽपि सः॥२७॥ धिर धिग्मां पापिनमिति निनिन्द खं मुहुर्मुहुः। यत्प्रहारोद्यतोऽभूवं गृहीताऽभिग्रहोऽप्यहम् // 275 // 1 निर्दयैः / 2 गृहीतखङ्गैः / 3 अभजि / 4 महिषे / 5 महिषवधे / 55SASA%ASANA // 11 //

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