Book Title: Aghatkumar Charitram Pramade Nirdravyaviprakatha Punyaprabhave Siddhadutta Katha
Author(s): Manchand Velchand
Publisher: Manchand Velchand

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Page 16
________________ अघटकु. आजगाम तदानीं च परिभ्राम्यन्नितस्ततः / आहूत इव तत्पुण्यैस्तत्रैव हि स यक्षराट् // 160 // चरित्रम् तथास्थमघटं वीक्ष्य ससंरम्भः पुरोऽभवत् / नीतः केनैष मत्सूनुरवस्था पथिकोचिताम् ? // 161 // दज्ञात्वा ज्ञानेन तद्वृत्तं यक्षः क्षुब्धाब्धिभैरवः / अये ! सुघटितेनैष हन्तुं प्रेषि दुरात्मना // 162 // साऽभ्यसूयस्ततो राज्ञि राजादेशं तमाकृषत् / अयःशल्यमयस्कान्तरत्नवद् व्यन्तरामरः // 163 // | "एतस्याऽधौतपादस्य देयं तालपुटं विषम्" / इत्येतामक्षरश्रेणीं दृष्ट्वा तस्मिन्नमार्जयत् // 164 // भूयोऽवधिप्रयोगेण विदित्वा कटकस्थिताम् / राज्ञो दुहितरं कन्यां कुमारस्य सहोदरीम् // 165 // "अनेनाऽऽयातमात्रेण परिणाय्या खसोदरा"। लिखित्वेति तथास्थाप्य राजलेखं स यातवान् // 166 // अघटः प्रातरुत्थाय कुमारशिबिरं ययौ / राजादेशं कुमारायाऽऽर्पयत् संमुखमीयुषे // 167 // कुमारोऽपि तमादाय नीत्वा मूर्दाऽवतंसताम्।राजानमिव साष्टाङ्गं मुक्त्वा सिंहासनेऽनमत् // 16 // द्वावप्यथ परिष्वज्य निविष्टावुचितासने। कुमारस्तमथोन्मुट्य तदर्थमवधार्य च // 169 // | दैवज्ञं प्रश्नयामास सम्भ्रमस्मेरलोचनः।अस्ति मेलापको लग्नः सुन्दर्या अघटेन किम् ? // 170 // युग्मम्।। सोऽवदद्देव ! मेलोऽस्ति हरगौर्योरिवाऽनयोः / लग्नमप्यद्य सन्ध्यायां तदेवाऽऽस्ते तदातनम् // 171 // अचिन्तयत् कुमारोऽथ मन्येऽस्मादेव कारणात्।एष एव जवात्प्रैषि सा नाऽऽहूता खसाखयम् // 172 // 1 सकोपः। // 7 //

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